Tag: सलीम रज़ा रीवा
बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भीफ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भीअकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिबकरम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भीजहाँ …
जहां में तेरी मिसालों से रौशनी फैलेकि जैसे चाँद सितारों से रौशनी फैलेतुम्हारे इल्म की खुश्बू से ये जहाँ महकेतुम्हारे रुख़ के चराग़ों से रौशनी फैलेक़दम क़दम पे उजालों …
साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होतामेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होताराह पर सदाक़त की गर चला नहीं होतासच हमेशा कहने का हौसला नहीं होताकोशिशों से …
अन-गिनत फूल मोहब्बत के चढ़ाता जाऊँ आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ oo जाने इस शहर में फिर लौट के कब आऊँगा पर ये वादा है तुझे भूल …
oo सुब्हे किरण के साथ नई रौशनी मिले !! गुलशन के जैसी महकी हुई ज़िंदगी मिले !! ये है दुआ तुम्हारा मुक़द्दर रहे बुलंद !! तुमको तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी …