सरहद–मुक्तक–डी के निवातियाँ डी. के. निवातिया 25/10/2016 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 18 Comments भायी न भाई को भाई की सूरत, बँटवारा कर डाला जन्मे थे एक कोख में, लालच ने दुश्मन बना डाला हमने तो सरहदे बनायी थी अमन-ओ-चैन के लिये ज़ालिमो … [Continue Reading...]