वज़ह — डी के निवातिया डी. के. निवातिया 24/10/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 12 Comments वज़ह *** बिना वज़ह ये सुबह शाम नहीं होतीहर एक शै: जग में आम नहीं होती !जी लो हर एक पल को फिर हो न होजिंदगी किसी की गुलाम … [Continue Reading...]