अब न कोई उमंग दिखे सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप 14/08/2016 सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' 13 Comments कहीं रंग दिखे, कहीं बदरंग दिखे। कहीं विरहिणी चिठ्ठी बैरंग दिखे।। किसके किसके तन पर कपडे डाले। आधुनिकता में सभी का अंग दिखे।। हो कैसे स्वप्न साकार समता का। … [Continue Reading...]