रोना—डी के निवातिया डी. के. निवातिया 04/03/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 12 Comments रोना तो बस मन का बहलावारोकर इंसान हर दर्द सह जाताआंसुओं में अगर होती ताकतये ज़माना कब का बह जाता ।मत लुटाना ये बेशकीमती मोतीये तो पहचान है संवेदनाओं … [Continue Reading...]