मेरा ठिकाना-९ —मुक्तक—डी के निवातियाँ डी. के. निवातिया 22/10/2016 अज्ञात कवि 18 Comments मैया कहे परिलोक से आयी, कुंवर देश तोहे जानापराया धन मेरे आंगन जिसे ब्याज समेत चुकानाससुराल में सब ताने मारे, तू अपने मायके जा नाबिटिया बाबुल से पूछे आखिर … [Continue Reading...]