मेरा ठिकाना-८ –मुक्तक—डी के निवातियाँ डी. के. निवातिया 21/10/2016 अज्ञात कवि 14 Comments दरख्त मिटे गए मिटा परिंदो का आशियाना खेत खलिहानों को मिटा, बना लिया घराना इस कदर विकास हावी हुआ इस जमाने में पशु पक्षी दूजे से पूछे, कहाँ है … [Continue Reading...]