मेरा ठिकाना-७—मुक्तक—डी के निवातियाँ डी. के. निवातिया 20/10/2016 अज्ञात कवि 8 Comments तेरे दिल के खंडहर में पड़ा है फटा-टुटा बिछाना कल होते थे जहाँ पल गुलजार, आज है वीराना अल्फाज लंगड़े हो गये, जज्बातो की ज़ुबाँ गयी देह तो बेजान … [Continue Reading...]