मेरा ठिकाना -६—मुक्तक—डी. के. निवातियाँ डी. के. निवातिया 18/10/2016 अज्ञात कवि 21 Comments हर किसी का होता है जहान में एक ठिकाना राहे भले हो जुदा-जुदा मंजिल सभी को पाना उम्र बिता देता है हर कोई ये पहेली बुझाने में ना जान … [Continue Reading...]