मेरा ठिकाना-3—-(डी के निवातियाँ) डी. के. निवातिया 26/09/2016 अज्ञात कवि 16 Comments ना पूछो यारो मुझ से मेरा ठिकाना देश का वीर हूँ हर छोर मेरा घराना रण, थार, पठार सियाचीन की बर्फ जंगलो की झाडी अपना सिरहाना ।।!!!!!!(डी के निवातियाँ) … [Continue Reading...]
मेरा ठिकाना—मुक्तक —(डी के निवातियाँ) डी. के. निवातिया 21/09/2016 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 16 Comments अक्सर लोग पूछते है मुझसे मेरा ठिकाना मै ठहरा बेघर परिंदा नही कोई आशियाना ठोकरे खाता फिरता हूँ सफर ऐ जिन्दगी में पा जाऊं मंजिल जिस रोज़, वही चले … [Continue Reading...]