मानव सब मेरे ही अपने raquimali 25/03/2017 अज्ञात कवि 5 Comments मानवजग में जितने हैंसब मेरे ही अपने हैं;सोच भले हो अलग-अलग सबके अपने काम-काज़ हैंसबके अपने सपने हैं।काफिर या मुनाफिक किसी को क्यों कह दूं मैं,ये बात भला कैसे … [Continue Reading...]