भूख – डी के निवातिया डी. के. निवातिया 07/06/2018 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 12 Comments भूख *** ये भूख जाने कैसी है, मिटती नहींतन-मन को तृप्ति, मिलती नहींजो जितना अधिक पा जाता हैचाहत फिर दोगुना बढ़ जाता हैकोई दो जून भरपेट को तरसता हैकही … [Continue Reading...]