धरणी नववर्ष आलोक पाण्डेय 01/01/2019 अज्ञात कवि 1 Comment क्रुर संस्कृति, निकृष्ट परंपरा कायह अपकर्ष हमें अंगीकार नहीं,धुंध भरे इस राहों मेंयह नववर्ष कभी स्वीकार नहीं ।अभी ठंड है सर्वत्र कुहासा , अलसाई अंगड़ाई है,ठीठुरी हुई धरा – … [Continue Reading...]