बेगैरत rakesh kumar 24/05/2018 राकेश कुमार 2 Comments आबरू मेरी चाहतों कीरोज ही लुटती हैतमन्नाओं के तकिये परसपने रोज सिसकते हैं |मुक़द्दस्त मालिक हो गयादेखो ये जहां मेरामुझे उधर घूमाते हैं जिधरअच्छा समझते हैं |चीखें भी मेरी … [Continue Reading...]