बुलबुल-ऐ-चमन – डी के निवातिया डी. के. निवातिया 21/04/2018 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 12 Comments बुलबुल-ऐ-चमन * कफ़स-ऐ-क़ज़ा में कैद बुलबुल-ऐ-चमन अपना हैबनाएंगे जन्नत-ऐ-शहर इसे लगे बस ये सपना है फ़िक्र किसे मशरूफ सब अपनी बिसात बिछाने मेंनियत में ,राम-राम जपना पराया माल अपना … [Continue Reading...]