गुण्डे चूहे नि. शार्दुल "हक़" 04/04/2017 अज्ञात कवि 15 Comments गुण्डे चूहे मेरे घर के गुण्डे चूहे, मस्त-मस्त मुश्टण्डे चूहे, पाव, रोटी, बिस्कुट खाते, दाल-भात सब चट कर जाते, केक-पेस्ट्री सन मौज उड़ाते, साबुन, टूथपेस्ट को ले जाते हैं, … [Continue Reading...]