पवन – डी० के० निवातिया डी. के. निवातिया 19/04/2019 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 4 Comments हे पवन !तू है बड़ी चंचल री,छेड़ जाती है,अधखिले पुष्पों को…!है जो चिरनिंद्रा में लीन,सुस्ताते हुए डाल पर,तेरे गुजरने के बादविचलित हो उठते है,नंन्हे शिशु की मानिंदतरस उठते है,जैसे … [Continue Reading...]