ढलता रहता हूँ — डी के निवातिया डी. के. निवातिया 11/07/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 16 Comments ढलता रहता हूँ *** हर रोज़, दिन सा, ढलता रहता हूँ !बनके दिया सा, जलता रहता हूँ !! कोई चिंगारी कहे, कोई चिराग ! यूँ नजरो में, बदलता रहता … [Continue Reading...]