मेरा ठिकाना-2—मुक्तक —डी के निवातियाँ डी. के. निवातिया 22/09/2016 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 10 Comments अब किस किस को बतलाऊँ अपना ठिकाना सीमा पर रहता हूँ, हर दिशा है आना जाना प्रेम से पुकारते है लोग मुझे कहकर जवान कर्म – धर्म है … [Continue Reading...]