जिन्दगी संग जुआ डी. के. निवातिया 27/04/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 22 Comments जिन्दगी संग जुआ जिन्दगी के संग जुआ खेलता हूँ ,रोज़ एक नया तजुर्बा झेलता हूँ ,नीचता की भी परिसीमा होती हैनेकी के नाम बदी करते देखता हूँ ।। डी … [Continue Reading...]