हां, हम झारखंडी है….(कवि पियुष राज ‘पारस’) पियुष राज 23/10/2018 पियुष राज 1 Comment _”वैसे तो हम सब हिंदुस्तानी है ,पर ये कविता इसलिए लिखा हूँ क्योंकि जब झारखंड के लोग दूसरे राज्य जाते है तो वहां उनका वेश-भूसा ओर बोली का लोग … [Continue Reading...]
राख…(पियुष राज) पियुष राज 26/07/2017 पियुष राज 5 Comments राखधन दौलत के अभिमान मेंइंसान हो जाता है मगरूरअपने आप को बड़ा समझकरअपनो से ही हो जाता है दूरमरने के बाद धन-दौलतसब कुछ हो जाता है खाकअंत मे जिंदगी … [Continue Reading...]