आला-रे-आला — डी के निवातिया डी. के. निवातिया 31/10/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 28 Comments आला-रे-आला *** आला-रे-आला, सुन मेरे लाला, लगा ले अपनी जुबान पे तालाजो बोलेगा सच्ची सच्ची बाते, किया जायेगा उसका मुँह कालावतन व्यवस्था का टूटा पलंग हैचरमारती अर्थव्यवस्था बेढंग हैढीला … [Continue Reading...]