अलबेला हूँ — डी के निवातिया डी. के. निवातिया 12/04/2017 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 22 Comments अलबेला हूँ ! भीड़ में खड़ा हूँ, फिर भी अकेला हूँ कदाचित इसीलिए मै अलबेला हूँ !!शोरगुल में धँसा पड़ा हूँ आफतो में फँसा पड़ा हूँरोता सा मै हँसा … [Continue Reading...]