Author: Vivek Sharma
“जब कभी ज़हन में गाँव का मंज़र आया।याद मुझको मेरा पुराना घऱ आया ।।वो पड़ोसी, अपनापन, नीम की छांव ।गांव छोड़ा क्यूँ मैं इस शहर आया ।।”(विवेक बिजनोरी) Оформить …
मेरी बर्बादी का सबब पूछेंगे।वो क्या, कैसे ओर कब पूछेंगे।।मेरी गजलों को पढ़कर लोग सभी।मेेरे शेरोंं का मतलब पूछेंगे। । मैं ख़ामोश हूँगा तू फ़िक्र ना कर।वो ऐसे सवाल …
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“ऐसे क्रोध संभालिए, जो गागर में नीर।कटु वचन मत बोलिए, चुभे ह्रदय में तीर।।””जाकी छवि निहारन सो, मिले ह्रदय का चैन।वाको सम्मुख राखिए, दिन हो चाहे रैन ।।”(विवेक बिजनोरी) …
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“मुझको इस काबिल बनाया, खुद भूखे प्यासे रहकर,मेरे बाबा ने मुझको समझा है सबसे बेहतर।मैं ग़रीब की बेटी अपने बाबा का सम्मान करूँ,माफ़ करना हे ईश्वर तुझसे पहले जो …
“आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ,इंसान कहाँ इंसान रहा अब वो तो है हैवान हुआकभी जिसको पूजा जाता था नारी शक्ति के रूप में,उसकी इज्जत को ही …
“जलजला ऐ मोहोब्बत उड़ा ले गया मुझे,जब संभला तब देखा कुछ टूट गया था।रिश्तो को निभाना कब न चाहा था मैंने,फिर भी एक रिश्ता था जो कहीं छूट गया …
“राजनीति बन गयी तमाशा अपने हिंदुस्तान की,ये कीमत चुकाई है तुमने शहीदों के अहसान कीलूट लूट गरीबों को अपनी तिजोरी भर रहे,सबका पेट पालने वाले आत्महत्या हैं कर रहे।बाद …
“मेरे ताक -ऐ- हुजरे के दीपक जला दे कोई,दिया,बाती, तेल सब तैयार है बस माचिस दिखा दे कोईमैं भूलता सा जा रहा हंसी क्या ख़ुशी क्या,एक धुंदली सी तस्वीर …
“गुलिस्तां -ऐ-जिंदगी में खुशबू सा बिखर के आया हूँ,हर एक तपिश पर थोड़ा निखर के आया हूँइतना आसां कहाँ होगा मेरी हस्ती मिटा देना,मैं मुफ़लिसी के उस दौर से …
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“काश कोई जुल्फों से पानी झटक के जगाता,काश कोई ऐसे हमको भी सताताकाश कोई बतियाता हमसे भी घंटो,काश कोई होता जो तन्हाई मिटाता” काश कोई जुल्फों से पानी झटक …
“जबसे होश संभाला है खुशियों का जमाना भूल गया,इससे अच्छा पहले था अब हँसना हँसाना भूल गया।पहले ना थी चिंता कोई बेफिक्रा मैं फिरता था,अब अपनी ही चिंताओं में …
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“हर ज़गह ढूंडा ना ज़माने में मिली,आज इंसानियत मिली तो मयखाने में मिली “(विवेक बिजनोरी) Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день …
“कुछ तो बाकी है मुझमे, जो हर ज़गाह ढूँडता हूँ खुद को खुद से मिलाने की वज़ाह ढूँडता हूँ….”(विवेक बिजनोरी) Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа …
“सोचता हूँ क्या लिखूँ दिल ए बेकरार लिखूँ या खुद का पहला प्यार लिखूँ सावन की बौंछार लिखूँ या सैलाबो की मार लिखूँ खुशियों का वो ढ़ेर लिखूँया किस्मत …
“आज पिता बनकर ये एहसास हुआ ये जाना है,आज पिता को हमने क्या समझा है क्या माना हैकितना सताया पापा को बचपन में एक खिलोने को,आज उनकी विवशता को …
“सब जानते हैं मैं नशा नहीं करता,मगर पी लेता अगर तू शराब होतीकिताबों से मेरा तालुक़ नहीं रहा कबसे,मगर फुरसत से पढ़ता अगर तू किताब होतीख्वाब तक आते नहीं मुझको …
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”माँ का अपने हाथों से रोटी खिलाना भूख में,पापा की वो सारी …