Author: विनय कुमार
हम शपथ लेते हैं हिंसा से दूर रहने की अत्याचार और असमानता के ख़िलाफ़ पूरी ईमानदारी से जंग लड़ने की मौन रखते हैं दो मिनट का अनाथ हो चुके …
दुख की अपनी भाषा होती है सबसे अलग और सबसे जुदा दुख पागल लम्हों की पतझड़ आवाज़ें हैं जिनकी क़ीमत का तख्मीना उजले काग़ज़ पर भद्दे काले शब्दों की …
एक टूटी हुई आस की रुक-रुक के चलती नब्ज़ पर उंगलियाँ जला रहा हूं मैं रात के अनंत अंधियारे में।
जहाँ तक जल्द हो सके बंद कर देनी चाहिये मक़तूल की आँखें वरना सफ़ेदपोशों की तस्वीरें जम जाती हैं काली पुतलियों पर तुरन्त !
चालाकी से उसका सपना तोड़ दिया मैंनें इन हाथों का कासा तोड़ दिया पागल था मैं पीली रंगत वालों का सरसों जब फूली तो पत्ता तोड़ दिया पहले सारे …
वहाँ भी होता है एक रेगिस्तान जहाँ किसी को दिखाई नहीं देती उड़ती हुई रेत वहाँ भी होता है एक दर्द जहाँ तलाश नहीं किये जा सकते चोट के …
यह कटा हुआ जंगल नहीं जला हुआ शहर है इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते पर्यावरणविद। इस चुप्पी के लिये बहुत सारे तर्क हैं इनके पास। जैसे कि …
घायल शेर गरजता है ज़ोर-ज़ोर से इतना कि ख़बर हो जाती है सारे जंगल को और यक़ीन कर लिया जाता है कोई अन्याय जरूर हुआ है शेर के साथ …
कुछ भी कर सकता हूँ मैं लौट के जाने के सिवा कोई चारा नहीं दिल उसका दुखाने के सिवा कब चिरागों से कोई काम लिया जायेगा क्या किया आपने …
मक्खी की तरह पड़ी है आपकी चाय की प्याली में हमारी वफ़ादारी हम जो बाबर की औलादें नहीं बाहर निकलना चाहते हैं पूर्वाग्रह और पाखंड के इस मक़बरे से …
कहाँ तक ये फरेबे-आरज़ू भी दगा दे जाएगा अपना लहू भी मुझे वो हर तरह आज़ाद करता मिटा देता हिसारे-रंगो-बू भी मुझे तो ज़ेहन दोजख सा मिला है मगर …
कई तरह के होते हैं साँप रेंगने वाले उड़ने वाले समुन्दरों में तैरने वाले किसी किसी के तो दो मुँह भी होते हैं लेकिन ये सब बताने के लिए …
एक ख़्वाबों का करबला होगा ख़ुश्क आँखों में और क्या होगा पेड़ साहिल पे जो खड़ा होगा राह मौज़ों की देखता होगा सैकड़ों लोग चाँद से होंगे कोई लेकिन …
क़तरा क़तरा टपकता रहता है किसी भयानक रात का स्याह दुख अन्तर्मन के किसी कोने में जाने कबसे पल रही होती है एक कविता अन्दर ही अन्दर और एक …
मैं नहीं चाहता कोई झरने के संगीत सा मेरी हर तान सुनता रहे एक ऊँची पहाड़ी प’ बैठा हुआ सिर को धुनता रहे। मैं अब झुंझलाहट का पुर-शोर सैलाब …
मैं तो बस झुंझलाना, ग़ुस्सा करना और चीख़ना जानता हूं मुझसे मत पूछो मेरी उपलब्धियों के बारे में मैं मंत्री, अभिनेता या क्रिकेट स्टार नहीं मुझे इक़रार है मैंने …
वे कहते हैं वसंत रुक क्यों नहीं जाता उनके गमले में उगे पौधों पर ठहर क्यों नहीं जाता हमेशा के लिए पानी गाँव के तालाब में धरती पर गिर …
MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूँ एक सुंदर सी कविता यहाँ बैठकर लेकिन मैं कर नहीं पा रहा उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति जो किसी लाश के चेहरे पर …
बापू की तस्वीर के नीचे बैठकर देख रहे हैं बच्चे W.W.F एक पाठशाला में आजीवन बनवास काटने आ गई है अहिंसा ।
1. बुझती हुई सिगरेट देर तक दबी रहे उंगलियों में तो जला डालती है स्पर्श की संवेदना 2. मृत शरीर कितने ही प्रिय व्यक्ति का क्यों न हो बदबू …
प्यार पनपता है मन में अपने आप बिना किसी प्रयत्न के जिस तरह जंगल में उग आते हैं असंख्य छोटे-छोटे पौधे लेकिन घृणा तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों …
हमको हर दिन उबाल कर मालिक हर घड़ी मत हलाल कर मालिक तेरे नौकर हैं, ठीक है, फिर भी थोड़ा ढँग से सवाल कर मालिक कल जो आँधी है, …
हक़ तुझे बेशक है, शक से देख, पर यारी भी देख ऐब हम में देख पर बंधु! वफ़ादारी भी देख हम ही हम अक्सर हुए हैं खेत, अपने मुल्क …
सुबह का चावल नहीं है, रात का आटा नहीं किसने ऐसा वक़्त मेरे गाँव में काटा नहीं शोर है कमियों ही कमियों का हर इक लम्हा यहाँ मेरे घर …
वे ख़ाम-ख़्वाह हथेली पे जान रखते हैं अजीब लोग हैं मुँह में ज़ुबान रखते हैं ख़ुशी तलाश न कर मुफ़लिसों की बस्ती में ये शय अभी तो यहाँ हुक़्मरान …