Author: Uttam
डूबते सूर्य के आगे तुम्हारी उभरती छविविस्तब्ध हैं नजारें जवान होता कवियकायक पक्षियों के कलरवघरौंदों में सपनों के दिये जला दिएदिन भर की तपिश के बादचाँदनी की ठंडक के …
एक कोमल सी कलि बन खिलती है वोसुगंध सी, मिठास सी घुल मिलती है वोमुझे गुमान है अपने मर्दाने अस्तित्व परस्त्री के मजबूत कोख में जो पलती है वोअहसास …
माँ की गोद में आशाओं की लोरी सुननाटेढ़े मेढे लकीरों से भविष्य की चादर बुननाकागज़ की पतंग से सितारों के फूल चुननाउंगली पकड़ कर बादशाहों सा घूमते मेले रेले …
मथी जाती है माटीचकले पर चढ करनाजुक स्पर्श से गढ करआग के कुँए से गुजर करवजूद बनता है दिए कामुँह में बाती को सम्भालेसंजो कर वो गर्म तेलरात भर …
क्यों आती हो तुम अमावस्या की रातजब चाँद तुम्हें इतना प्यारा हैकैसे करें तुम्हारे दर्शन की आसचारों ओर अभी अंधियारा है कहते हैं कि उल्लू पर तुम आती होहन्स …
अंधेरों के गर्भ में पलता उम्मीद का बीज सीप में छुपा मोती की तरह अपने बंधनों को तोड़ बाँहें फैला कर क्षितिज का सीना चीर गगन को लहूलुहान बना …
हर शाम मुझे मिला है तेरा आँचल तेरी गोद में छोरों को चूसने की मिठास लोरी के सुरों से बढती सपनों की प्यास झरोखे में चाँद तारों की दुनिया …
तेरी बज्म में सब कुछ खो कर ये मुकाम पाया हूँ लबों की हसीं, रातों की नींद, दिल का आराम पाया हूँ नफरतों की जमीन पर नहीं खिलते केसर …
वो लौट आए थे फिर मीलों का करके सफर लहुलुहान था धवल शरीर हौंसला लेकिन था बुलंदी पर साथ लाए थे भविष्य अपना नई पीढ़ी का सजाने सपना कहानियों …
ममता की बैसाखी टोड़ कर अरमानों के पंख जोड़ कर मासूमियत का दामन छोड़ कर पांव पर अपने खड़े हो गए हैं अब हम बड़े हो गए हैं रुके …
बाबू जी एक रोटी को हमेशा भाईयों में बाँटते थे एक जैसा रोटी एक थी उसके हिस्से हम रोटी एक थी पर खुश थे हम खून का रिश्ता वो …
प्राणों में तेज जगाती तुम सूर्य बन कर दिलों में प्यास बढ़ाती तुम सूर्य बन कर धरती को उर्वर बनाता है प्रेम का बीज जीवन के कोख में आती …
यह खबर फैली थी चारों ओर देश की अर्थ व्यवस्था है कमजोर लोगों की आर्थिक स्थिति में गिरावट आई है इस कारण भयंकर मायूसी छाई है अर्थ संयोजन मनुष्य …
भस्म कर दी हमने सारी इच्छाएं हवन की ज्वाला बन छू ली दिशाएँ धूँआ हो गया अहम का पाला प्यार ने मुझे कोयला कर डाला गर्द के अनगिनत पर्तों …
मैं डरता हूँ चंद्र मुख के दाग दिख न जाए अंधेरों का आवरण मैं करता हूँ मैं डरता हूँ न मार सके भूख मुझे औरों के निवाले हरता हूँ …
::: भीग गया मैं ::: आज भीग गया मैं बारिश में मन की मिट्टी गीली हो गई भावों की उंगलियों में जन्मी चंचलता न जाने कितने सपनों के पुतले …
तेरी बज्म में सब कुछ खो कर ये मुकाम पाया हूँ लबों की हसीं, रातों की नींद, दिल का आराम पाया हूँ नफरतों की जमीन पर नहीं खिलते केसर …
आसमाँ सतरंगी और जमीन नीला है आज होली में कृष्ण के रंग में शिव का भंग मिला है आज होली में प्रेम की गंगा आस्था कमंडल में सिमट रही …
आज तो रंग दो मुझे गुलाबी, कि रंगीला फागुन आया रे अब हरा रंग न भाए जरा भी, कि रंगीला फागुन आया रे सिमटे थी तेरे प्रेम की अगन, …
रंग डालूंगी आज तो प्रीतम को लाल साँवले गालों पर मथ कर गुलाल देखें नहीं चढता कैसे मेरा रंग सांवरे पर सारे गुरुर होंगे आज भंग बावरे पर नटखट …
तुम्हारे प्रेम की चादर का वो आलिंगन सर्द रातों में सदा मुझे देती है वो तपन चोटों पे जब भी निकली है हृदय से क्रंदन सहारा बना है हमेशा …
मैं खुश हूँ अपेक्षाएं, आकांक्षाएं बड़ी हैं लाखों परेशानियां खड़ी हैं राह में बाँहें पसारे नाम लेकर मुझे पुकारे मैं खुश हूँ दूर रहूँ अरमानों के साये से वर्तमान …
साँसों की आरी काट रही है मन पर पड़ी पत्थर की चादर हर आती साँस लाता मेहर खुदा का ले जाती है अहम्, लालच और डर एक सीढ़ी से …
इक मासूम कलि बन कर तुम आई मेरे जीवन में जूही की खुशबु की तरह तुम समाई मेरे जीवन में मैं तो बिखरा पड़ा था पतझड़ के सूखे पत्तों …
घंटी बजती है सुबह बातें हुई थी कुछ बेरुखी सी दिन भर कसकती रही वह दुखी सी साँझ का सूरज नये उमंग जगाएगा उम्मीद की दुल्हन फिर सजती है …