Author: सन्तोष कदम
में…में बकरी मटक-मटक चली तो रस्ता गई भटक । ब-ब-बचाओ ! गले में उसके- बोली निकली अटक-अटक । ०० टिक-टिक घोड़ा टिम्मक-टिम । चलता डिम्मक-डिम्मक डिम । जिसने छोड़ी ज़रा …
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती – स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती – अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं – बढ़े चलो बढ़े चलो। …
“तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन! विकल होकर नित्य चंचल, खोजती जब नींद के पल, चेतना थक-सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन! …
कोमल किसलय के अंचल में नन्हीं कलिका ज्यों छिपती-सी, गोधुली के धूमिल पट में दीपक के स्वर में दिपती-सी। मंजुल स्वप्नओं की विस्मृति में मन का उन्माद निखरता ज्यों …
बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी। खग कुल-कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई …
साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता, चल रहा आकाश भी है शून्य में भ्रमता-भ्रमाता, पाँव के नीचे …
रात आधी खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने। फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी। तारिकाऐं ही गगन …
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय तुम आते तब क्या होता? मौन रात इस भांति कि जैसे, कोई गत वीण पर बज कर, अभी-अभी सोई खोई-सी, सपनों में तारों …
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो! ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता, जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता, नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया, …
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा …
लो दिन बीता, लो रात गई, सूरज ढलकर पच्छिम पहुँचा, डूबा, संध्या आई, छाई, सौ संध्या-सी वह संध्या थी, क्यों उठते-उठते सोचा था, दिन में होगी कुछ बात नई। …
कहते हैं तारे गाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं! सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमने कान लगाया, फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन …
जुगनू अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? उठी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चांद औ’ तारे, उठा तूफान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे, …
इस पार उस पा इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा …
ईंधन छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी हम उपलों पर शक्लें गूँधा करते थे आँख लगाकर – कान बनाकर नाक सजाकर – पगड़ी वाला, टोपी वाला मेरा उपला …
स्वतंत्रता का दीपक घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो, आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं। यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है। शक्ति का दिया …
आराम करो एक मित्र मिले, बोले, “लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो। क्या रक्खा है माँस बढ़ाने …
कारवाँ गुज़र गया स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया, गुबार …
बरसों के बाद कहीं बरसों के बाद कभी हमतुम यदि मिलें कहीं, देखें कुछ परिचित से, लेकिन पहिचानें ना। याद भी न आये नाम, रूप, रंग, काम, धाम, सोचें, …
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों, इस दिए में …
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी …
सम्पूर्ण यात्रा प्यास तो तुम्हीं बुझाओगी नदी मैं तो सागर हूँ प्यासा अथाह। तुम बहती रहो मुझ तक आने को। मैं तुम्हें लूँगा नदी सम्पूर्ण। कहना तुम पहाड़ से …
लो वही हुआ लो वही हुआ जिसका था डर, ना रही नदी, ना रही लहर। सूरज की किरन दहाड़ गई, गरमी हर देह उघाड़ गई, उठ गया बवंडर, धूल …
कौन रंग फागुन रंगे कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत, प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत। रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग, कब जाने कब धो गया, …
शाम: दो मनःस्थितियाँ एक: शाम है, मैं उदास हूँ शायद अजनबी लोग अभी कुछ आयें देखिए अनछुए हुए सम्पुट कौन मोती सहेजकर लायें कौन जाने कि लौटती बेला कौन-से …