Author: T. Shrinivas Rao
मेरे इस हथेली में समा जाती थी, पोपले मुंह से मुस्कराकर मेरा हर ग़म,हर थकन मिटा देती थी । एक दिन नन्हें हाथो और नन्हें पैरों से इस हथेली …
अस्मत लूटी, मर्दानगी दिखाई, मज़ा न आया . सरेराह क़त्ल कर दीये,सारे शहर के सामने . सहम गये सब के सब,हर कोई डर गया . दूसरे दिन अख़बार में …
धन आ रही है, जा रही है, अधिक आ रही है, सेठ साहूकार है, आ रही है, जा रही, केवल जा रही है, श्रमिक कर्मचारी है, और धन आ …
जितना छुपाती है, उससे ज्यादा बोल देती है। उसकी आखें है ही ऐसी, सारे राज खोल देती है।। मै चीख चीख कर कहता हूं, किसी की समझ मे नहीं …