Author: Sudha Gupta
वासंती छंद फिर बंशी कन्हैया की ऐसी बजी ———————- मंत्र मदन मुस्काय पढ़े सखि फागुन की ऋतु आय गई , बागन कोयल कूक हँसे सखि आमन बौर रिझाय गई …
टेसू को फुरसत कहाँ थका हुआ राही चला ठहरे उसके पाँव , टेसू को फुरसत कहाँ जो दे ठंडी छाँव l जिसके ह्रदय अंगार है उससे क्या उम्मीद , …
जब से मंदिरों में कलह का घंटा बजने लगा है , मन बार – बार सीढियाँ चढ़ता , फिर उतरने लगा है अगरबत्ती में भर गई है मरघट की …