Author: सोनित
किस बात पे इतना गरजे होकिस बात पे तुमको इतनी अकड़अपने ही बने उस जाल में कल फंस कर के मरी है एक मकड़…. read more Оформить и получить …
हमने तुमने आग बरसते शोलों की रखवाली की है.. हमने तुमने अपनी बस्ती आप जलाकर खाली की है..read more Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на …
कोई ख्वाब है के ख़याल है..तू जवाब है के सवाल है..तुझे ढूंढने की थी ख्वाईशें..तू जो मिल गई तो मलाल है..ऐ जिंदगी.. ऐ जिंदगी…read more Оформить и получить экспресс …
साहब..मैं कुत्ता हूँ..अपनी जात का आदमी सूंघ लेता हूँ..फिर हम मंडलियों में भौंकते हैं…..read more Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день …
चाँद, रात, तेरी बात, और चाहिए भी क्या..संग तेरे अब हयात, और चाहिए भी क्या..see more Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в …
रात होती है तो यूँ लगता है..लो बिछड़ने का वक़्त हो आया..अब के जाकर मिले थे डाल पे और..अब के उड़ने का वक़्त हो आया..रात होती है तो यूँ …
“वो हिन्द का सपूत है”आप सभी के मार्गदर्शन के चलते मेरी कविता “वो हिन्द का सपूत है” को “स्पर्धा २०१७” प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है. कविता का …
इन नजरों से देखो प्रियवरपार क्षितिज के एक मिलन हैधरा गगन का प्यार भरा इकमनमोहक सा आलिंगन है..पंछी गान करे सुर लय मेंनभ की आँखें लाल हुई हैंकुछ दुःख …
शांत समुद्र..दूर क्षितिज..साँझ की वेला..डूबता सूरज..पंछी की चहक..फूलों की महक..बहके से कदम..तुझ ओर सनम..उठता है यूँ ही..हर शाम यहाँ..यादों का नशा..यादों का धुआँ..कुछ और नहीं..कुछ और नहीं..यादों के सिवा..अब …
आज तन पर प्राण भारी मन हुआ स्वच्छन्द जैसेतोड़ सारे बंध जैसेदेह की परिधि में सिमटे अब नहीं यह रूह सारीआज तन पर प्राण भारी लोक क्या परलोक …
20-01-2017 की सन्ध्या ६ बजे तक किए गए Shares ही गिने जाएंगे.“कचरेवाली” Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит …
इक कचरेवाली रोज दोपहर..कचरे के ढेर पे आती है..तहें टटोलती है उसकी..जैसे गोताखोर कोई..सागर की कोख टटोलता है.. उलटती है..पलटती है..टूटे प्लास्टिक के टुकड़े को..और रख लेती है थैली …
चल अम्बर अम्बर हो लें..धरती की छाती खोलें..ख्वाबों के बीज निकालें..इन उम्मीदों में बो लें.. सागर की सतही बोलो..कब शांत रहा करती है..हो नाव किनारे जब तक..आक्रांत रहा करती …
सौ सवाल करता हूँ..रोता हूँ..बिलखता हूँ..बवाल करता हूँ..हाँ मैं……….सौ सवाल करता हूँ..फिर भी लाकर उसी रस्ते पे पटक देता है..वो देकर के जिंदगी का हवाला मुझको..और चलता हूँ उन्ही …
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..छुपकर तुमसे और किसी से पहले बात …
पहले मुद्दा बनता एक खबर फिर..ख़बरें मुद्दा बन जाती हैं मुद्दों पर बहसें होती है फिर बहसों में मरती मर्यादा खुद एक खबर बन जाती है.. मुद्दा मुर्दा बन …
लहू लुहान जिस्म रक्त आँख में चड़ा हुआ.. गिरा मगर झुका नहीं..पकड़ ध्वजा खड़ा हुआ.. वो सिंह सा दहाड़ता.. वो पर्वतें उखाड़ता.. जो बढ़ रहा है देख तू वो …
यहाँ जिस्म ढकने की जद्दोजहद में… मरते हैं लाखों..कफ़न सीते सीते… जरा गौर से उनके चेहरों को देखो… हँसते हैं कैसे जहर पीते पीते… वो अपने हक से मुखातिब …
“मैकदों में मैकशों की भीड़ दिखना आम है.. इस कदर पी आज इन्सां की शराफत पी उठे.. मौत से जाकर लिपटना फितरत-ए-बुज्दिल रही.. इस कदर जी मौत भी तुझसे …
वक़्त को दीवार पर टांग रखा है और जब देखता हूँ शक्ल उसकी जैसे कोई बेबस.. तिलमिलाता हुआ लाख मजबूरियाँ..पर जिंदगी बसर करता फिर रात के सन्नाटों में आकर …
“तुम्हें जिंदगी से शिकायत बहुत है..मगर मौत भी बेरहम कम नहीं… जिन्हें जिस्म ढकना मुनासिब नहीं..यही मौत उनसे कफ़न मांगती है…” -सोनित
आज उस पुराने झूले को देखकर कुछ बातें याद आ गयी.. कई बरस गुजरे जब वो नया था.. उसकी रस्सियाँ चमकदार थी.. उनमे आकर्षण था.. उन रस्सियों का हर …
वो खुदा को इस जहाँ में देखता है और फिर वो आसमाँ भी देखता है जो मसीहा बन रहा था दिन में वो अब रात में कुछ क़त्ल होते …
किसी गुल सा मेरे गुलशन में भी खिलते रहिए… कभी दो चार दिन में हमसे भी मिलते रहिए… तेरि अटखेलियों का मैं भी इक दिवाना हूँ… मैं किनारा हूँ…लहरों …
जहाँ में आफतें सौ और इक आफत जिगर में है… . . . . . . . . मगर सौ झेलना आसां यहाँ इक झेलना मुश्किल… – सोनित