करती है सरकार भईया।। आजकल व्यापार भईया।। इन्हें तो बस वोट चाहिए। देश का बंठाधार भईया।। गुंडे मवाली छुटभैयों से संसद है लाचार भईया। किसे पड़ी है सच बोलेगा …
मुझे भूख नहीं है , नहीं चाहिए मुझे रोटी ! प्यासा नहीं हूँ मैं ! पानी भी नहीं चाहिए ; कोई दे सके तो दे मुझे ; एक …
अपने हालत पे यूँ लाचार हो गए हैं ।। आम थे कभी, आचार हो गए हैं।। अपनी आजादी पे किसकी नज़र लगी प्यारे उम्र भर के लिए गिरफतार हो गए हैं ।। भूख लगी हमने तो रोटी क्या मांग ली, उनकी निगाहों में गुनहगार हो गए हैं ।। वो देने आया था दर्देदिल का दवा हमें सुना है इन दिनों बीमार हो गया हैं।। सुना है कुछ बेईमान लोगों ने कैसे , कुछ जोड़ तोड़ की है ओर सरकार हो गए है ।। दुवा मांगी थी कभी खुशियों की मैंने उसी दिन से मेरे हाथ बेकार हो गए है।।
कभी जनता, कभी सरकार बीकता है ! कभी कुर्सी , कभी दरबार बीकता है ! हर चीज है यहाँ बिकाऊ दोस्तों ; कोई छुप कर कोई सरेबाजार बीकता है ! …
ऐ मेरी कविता ! मैं सोचता हूँ लिख डालूं , तुम पर भी एक कविता ! रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं को रंग डालूं स्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से, …