Author: शीतलेश थुल
तू खुद की खोज में निकल। तू किसलिये हताश है, तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है। जो तुझसे लिपटीं बेड़ियाँ, समझ ना इनको वस्त्र तू …
जब कभी मैं अकेलापन महसूस करता हूँ, बस पुराने दिनों को याद किया करता हूँ, याद किया करता हूँ उन दिनों को, जो मेरी जिन्दगी के हसीन दिन थे, …
“शब्दो का जाल बिछाये बैठता हूँ , हिन्दी साहित्य के समन्दर में, आखिर इन रचनाओँ से ही तो अपना घर चलता है…..” शीतलेश थुल।
“जो भी दिल के करीब लगा, छीन ले गया तू उसे मुझसे , तुझसे मेरी नफरत बेवज़ह तो नहीं….” शीतलेश थुल !!
झूठे आश्वाशन दिलाकर, मांगते हो तुम वोट, मिल जाये जब कुर्सी तुमको, भरने लगते हो तुम नोट, देश-सेवा की शपथ खाकर, मन में रखते हो तुम खोट, जिस थाली …
वो आएंगे, सुना है आज आएंगे। कर लू मैं सोलह श्रृंगार, सज-धज हो जाऊं भी तैयार, फिर मेरे आँगन , दीप जगमगाएंगे। वो आएंगे, सुना है आज आएंगे। नैनो …
जब तलक हम साथ थे, वो बिगड़ा बिगड़ा सा लगता था, आज जुदा हो के भी, वो बिगड़ा बिगड़ा सा लगता है, क्या वो सच में ऐसा ही है, …
फकत एक राज़ छिपा बैठा है, तेरे मेरे दरमियान, जो बड़ी ख़ामोशी से बढ़ा रहा है, तेरे मेरे दूरियाँ, ना जानू ना मैं, ना जाने ना तू, आखिर कैसी है …
वो तो सबकुछ ठीक है, एक बात बताओ, तुम मुझसे इतना लडती क्यूँ हो ? जवाब आया :- “प्यार भी तो बेशुमार तुमसे करती हू” मैं चुप:- …………………………… नतीजन …
“घर की चौखट पे खड़े, तेरा राह ताकना, मेरा फिर बेवजह देर से आना, सवालों-जवाबो का सिलसिला चलता रहता है, और इसी से तो शीतलेश, तेरा घर घर-सा लगता …
छट गया था अंधियार, …………………., ………………………,क्यूँ की दिन था “शीतलेश” मंगलवार, हो करके मैं घर से तैयार, ………………, चला निपटाने कुछ सरकारी काम, छट गया था अंधियार, …………………., ………………………,क्यूँ …
छट गया था अंधियार, चलने लगी थी मंद बयार, चिड़ियों ने गाया अपना गान, लो हो गया है प्रातः काल, था मेरा मनपसंद का वार, क्यूँ की दिन था …
कभी तो जान लो , मेरे मन की बात, क्या हर बात बताना जरूरी है। कभी तो रहने दो, राज़ को राज़ , क्या हर राज़ खोलना जरूरी है। कभी …
उठता धुंआ सा, कभी बुझता दीया सा तू लगे है मुझे। कल्पनाओं से परे, तो कभी दामन में मेरे तू लगे है मुझे। । भ्रमित करती मेरे सपनो की …
एक ऊंची लहर आती है, साथ बर्बादी लाती है, पीछे तबाही का मंजर छोड़, साथ सबकुछ ले जाती है, गगन चुम्भी इमारते, ये विशाल विशाल पेड़, कल तक मेरे …
देख रही हैं जमीं आसमां को, जैसे कुछ ढूंढ रही हो, कब आयेगा मेरा बादल, मन ही मन ये पूछ रही हो, चुप्पी साधे खड़ा आसमां, नीचे सिर झुकाता …
तरसते है मेरे हाँथ सितारों को छूने के लिये, कही कम ना हो जाये चमक सितारों की, अपने मैले हाँथ छिपाये बैठा हूँ …. . शीतलेश थुल
मैं डरता हूँ तन्हाइयो से, अकेलेपन से, पर मैं डरपोक नहीं, कायर नहीं हूँ मैं, ठीक है मैं डरता हूँ, तेरे ख्यालो से, तुझसे जुडी हसीन यादों से , …
इस तपती जमीं पे धूल उड़ा रहा है कोई… ऐ मेरे मालिक, अब तो अश्क बहा दे… . . शीतलेश थुल
तेरे पैरो के निशाँ ढूंढते , चलता चला हूँ मैं, इसी उम्मीद में शायद मिल जाये तू कही, रास्ते का पत्थर पीठ में लादे चलता चला हूँ मैं, शायद …
शिकायत लबों पर अक्सर, उनके रहती है, के हमें प्यार करना नहीं आता, दिल भी दे दिया, जान भी दे दी, फिर भी कहते है , के हमें प्यार …
क्या मिला इन सभी को, दे दिया दर्द हमने हम ही को, छोड़ दिया साथ तुम्हारा, तोड़ दिया दिल तुम्हारा, आखिरी सलाम इस सर-जमीं को, दे दिया दर्द हमने हम …
. . शीतलेश थुल
. . शीतलेश थुल !!
ये दिल भी बड़ा अजीब है, बेवजह ही किसी के लिये धडकता है, पागल है जो तडपता है, क्यूँ ये उन ख्यालों में खोया रहता है, जिनका अस्तित्व ही …