Author: श्रीधर आचार्य ‘शील’
धर दिव्य-देह मानव कापुरूषोत्तम बनना होगाजिस पथ पर श्रीराम चलेउस पथ पर चलना होगा मायावी इस दुनिया मेंछल-प्रपंच और कपट भरेजनता शोषित पीड़ित हैबाधा इनकी कौन हरे भेदभाव की …
लहरों में डूब गया दिन दो पल के सपने गिन–गिन | डाल–डाल पर बिखरे पत्ते मौसम की गंध के लिए जागे हैं अब सोए चेहरे अपने अनुबंध के लिए …
कुछ ना कुछ तो मजबूरी है, आपस में इतनी दूरी है कलियाँ साथ भले ही दे दें, उपवन साथ नहीं देता है | एक गंध कर रही मसखरी एक …
जिन्दगी खुली किताब पढ़ रहे हैं लोग शब्द–शब्द हाशियों में गढ़ रहे हैं लोग | जिसके पृष्ठ–पृष्ठ पर लिखा ही दर्द है कल्पना में बात सोचना भी व्यर्थ है …