Author: sanjay kumar maurya
दिल से दिल की चोरी हो जाये। एक दूजे में छोरा छोरी हो जाये ।। तुम शाम ढले मिलने आ ही जाना, कल क्या जाने कोई मजबूरी हो जाये। …
काश मिट जाती सारी बेरुखियां अपनी जैसे रेत पर लिखी तहरीर मिट जाती है खुदबखुद हवा की झोंको से या समंदर की लहरों से या फिर काश हम तुम …
रिमझिम बरस रे बदरा सावन का मौसम आया पपीहा तान लगाये मीठा सब निज मन को भाया बह बह के पुरवाइ रसीली तन मन को मदमस्त बनाई ली देखो …
कुछ और नहीं हमी की तरह है ये जिंदगी जिंदगी की तरह है यो न झुका सर हर चैखटों पर ये आदत बंदगी की तरह है क्यूं जां लेके …
वर्षो पहले जब तुम गये थे छोड़ समग्र रिश्तों को तोड़कर तो सब ले गये थे साथ जितना तुम्हे याद रहा होगा तब तुमने जाने भर कुछ न छोड़ा …
सब त्याग देंगंे तेरे लिए पर उस घर को कैसे जिसके आगन में पग बढ़ाना जाना उन भाईयों को कैसे जिनके साथ रहकर ये अनुभव किया कि मेरे दो …
हिरणी की जैसी दो नेत्र उपर दूज की चांद की आकृति बनाता काली नुकीली दो भौहें उभरा चमकमता ललाट एक लंबा उॅचा नाक गुलाब की पंखुड़ी सी सुघड़ कपोल …
जैसे भंवरा कोई भ्रमण करता उपवन उपवन गूंजन का मधुर स्वर बिखराता फिरता बर्तन मांजने से चमकता है विवेक अध्ययन से प्रेम आभास व विश्वास से सब पीछे छूट …
नहीं तुम दर्पन मत देखो मुझे पता है दर्पन चाहता है तुम्हे देखना वह देख लेगा तुमको स्वयं में उतारकर बस एक बार निहारकर एकदम वैसे ही जैसे तुम्हे …
जब खा लेता हूं तो खाकर सो जाता हूं बहुत चाहकर भी कविता लिख नहीं पाता हूं अब जान पाया हूं कविता लिखने की शर्त अब हटा है कवतिा …
भीषण ग्रीष्म धरती छूकर जलते पैर बड़ी कठीनाई से पहुचता था बिना चप्पलों के तालाब के किनारे उस पेड़ के नीचे । एक गौरैया गर्मी से बेहाल किनारे पानी …
संसार होता है जब नींद में मग्न दिन भर के उथल पुथल से जुदा होकर शान्ति की सानिग्द्य में तब कोई आंखे जागकर कल्पना के जग में लवलीन अंधेरे …
मुद्दतों तुमसे अठखेलियां करता रहा लिपट दामन से तेरे आह मैं भरता रहा था प्रेम में तेरे जीता और मरता रहा पर नींद से जागा तो तुम थी ही …
उठता है कोई तूफान मचता है भयंकर हलचल बिछ जाती है अंबर में काली बदली और अथाह बूंद की सागर लिए अंबर की आगोश मे लगती है मॅडराने व …
मेरे वो गम पुराने हो नहीं पाये चैन से हम अभी तक सो नहीं पाये यों सफर चलते हुए छिंटे लगे थे कि कोशिशें लाखों किये पर धो नहीं …
वो सामने मेरे नजर मुझको नहीं आता जब भी मिला दरिया मिला सागर नहीं आता उसे देखा नहीं लेकिन दिल में रहा तो था सफर में कहीं वो मील …
1 उस शहर के लोग हैं घबराए हुए क्यों हैं चेहरे मुरझाए हुए क्यों साथ में कुछ सामान है स्त्रियां हैं बच्चें हैं वृद्ध हैं आखें मंे भय है …
लहलहाते फसल सिंचता किसान सरसो की बसंती फूल कलेवा ले जा रही औरत और उसके कदमों की मंथर मंथर चाल उसकी पायल की रुनझुन से उत्पन्न हो रहे थे …
गेहूॅ की बालियां सरसो के फूल पीले पीले मटर के छिमी गूच्छे गूच्छे आम के मोजर लगते कितने अच्छे पछुआ सिहराती गात छू कर मधुर कोयल लगाती डाल पर …
अकेलेपन में होकर जीवन से निराश हताश जब भी सोचता हूॅ क्यो असफल हो जाता हॅू तब अपने आप से उकताता हूॅ स्वयं से लड़ता झगड़ता हूॅ स्वयं की …
जिंदगी हर किसी की मिल जाती है कहानी में वो आदमी भी सिकन्दर था कभी जवानी में पहचानने से बज्म में इन्कार करता है उसे खत वो अनगिनत जिसकी …
देख रहा हूं उसे आते हुए वो जो गई थी कभी न आने का शपथ लेकर एक अनजाने से एक वीराने से जहां से था मैं अनभिग उस जगह …
दूरियां इतनी है कि मिल नहीं सकते बिल्कुल वैसे जैसे मृत्यु के पश्चात होता है अपितु तुम इसी जग में हो और मैं भी इसी जग में पर कहीं …
माघ का हाड़ में कंपन मचाने वाला माह कांपता किसान उन के फटे चिथड़ों में, अनवरत दौड़ता कोल्हू के चारो ओर जोड़ीदार बैलों के पीछे रुकता नहीं कदापि संभवत: …
1 एक पूष्प एक पौद्ये की टहनी पर मेरे घर की आॅगन में मेरे गमले में जिसे हाल ही में कुछ रोज पहले लगाया था ये आश लेकर मन …