Author: साक्षी प्रजापति
वतन फिर तुझको पैमाने-वफ़ा देने का वक़्त आया तिरे नामूस पर सब कुछ लुटा देने का वक़्त आया वह ख़ित्ता देवताओं की जहां आरामगाहें थीं जहां बेदाग़ नक़्शे-पाए-इंसानी से …
सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा । कितनी सुनासान है तेरी महफ़िल साकी ।। ख़त्म हो जाए न कहीं ख़ुशबू भी फूलों के साथ, यही खुशबू तो है …
निगाहों दिल का अफ़साना करीब-ए-इख्तिताम आया । हमें अब इससे क्या आया शहर या वक्त-ए-शाम आया ।। ज़बान-ए-इश्क़ पर एक चीख़ बनकर तेरा नाम आया, ख़िरद की मंजिलें तय …
मेरे अंतस में मत झाँको आँख तुम्हारी नम होगी गीतों में मेरे डूबो तो पीड़ाएँ कुछ कम होंगी । जीवन तो मृगतृष्णाओं के जंगल जैसा है जैसा तुमने सोचा …
नेकी बदी की गठरी बाँधे खूँटी-खूँटी टँगे हैं लोग किसे क्या बताएँ सब अपने रंगों में ही रंगे हैं लोग । दुनिया लगती है बेमानी आसमान झूठा लगता है …
पिघले सोने सी कहीं बिखरी पीली धूप। कहीं पेड़ की छाँव में इठलाता है रूप। तपती धरती जल रही, उर वियोग की आग। मेघा प्रियतम के बिना, व्यर्थ हुए …
निकल पड़ा था भोर से पूरब का मज़दूर दिन भर बोई धूप को लौटा थक कर चूर। पिघले सोने सी कहीं बिखरी पीली धूप कहीं पेड़ की छाँव में …
एक हिंदी ग़ज़ल : चांदनी क्या शरारत वहां कर रही चांदनी-? रात भर खिडकियों पर रही चांदनी। मैं तुम्हारे लिये गीत गाने लगा- इसलिये आजकल डर रही चांदनी। सब तुझे …
एक ग़ज़ल : गर ज़मीं …….. गर ज़मीं आशियाँ बनाने को- तो फलक बिजलियाँ गिराने को। किस तरह से कहें फ़साने को, हर तरह उज्र है ज़माने को। हमने चाहा …
एक हिंदी ग़ज़ल : चांदनी क्या शरारत वहां कर रही चांदनी-? रात भर खिडकियों पर रही चांदनी। मैं तुम्हारे लिये गीत गाने लगा- इसलिये आजकल डर रही चांदनी। सब तुझे …
एक ग़ज़ल इक मुसाफिर ने कारवां पाया। कातिलों को भी मेहरबां पाया. मेरे किरदार की शफाक़त ने- हर कदम एक इम्तिहाँ पाया। जुस्तजू में मिरी वो ताक़त है- तुझको …
तुम मुझसे बस शब्द और सुर ले पाये- पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरे गीत-? मुझको तो बस गीत सुनाना आता है, होंठो पर संगीत सजाना आता है गहरा …
सूखते होंठों पे हमको तिश्नगी अच्छी लगी। जिंदगी जीने की ऐसी बेबसी अच्छी लगी। इस नुमाइश ने दिखाए हैं सभी रंजो-अलम- इस नुमाइश की हमें ये तीरगी अच्छी लगी …
एक ग़ज़ल इक मुसाफिर ने कारवां पाया। कातिलों को भी मेहरबां पाया. मेरे किरदार की शफाक़त ने- हर कदम एक इम्तिहाँ पाया। जुस्तजू में मिरी वो ताक़त है- तुझको …
एक ग़ज़ल : “रोक पाएंगीं क्या ………” रोक पाएंगीं क्या सलाखें दो-? जब तलक हैं य’ मेरी पांखें दो । जिसने सबको दवा-ए-दर्द दिया- आज वो माँगता है- साँसें दो …
ग़ज़ल : कोई हमदम या…………… कोई हमदम या कोई कातिल दो। मेरी कश्ती को एक साहिल दो. अब तो तन्हाइयां नहीं कटतीं- दे रहे हो तो दोस्त-महफ़िल दो। चांदनी में …
एक ग़ज़ल : बाद मुद्दत के ……. बाद मुद्दत के इक हंसी देखी। एक मजलूम की खुशी देखी। उनको देखा तो यूँ लगा मुझको- जैसे बर-बह्र शाइरी देखी। दिल के …
एक गीतः सोच लेंगे —- सोच लेंगे कोई उलझन आ गई है बिन बुलाए- हम पहुंच जायेंगे तुम तक, क्या हुआ जो तुम ना आए । तुम तनिक सी …
एक गीत ;”वे संबोधन—-” वे संबोधन याद करो । अपने विगत क्षणों से प्रियतम- थोडा तो संवाद करो । अधरों ने विस्मृत करने का बहुत अधिक आयास किया है । …
गीत : वे आँखें …….. वे आँखें जितनी चंचल हैं उससे ज्यादा मेरा मन है . वे आँखें जिनमें तिर आया जैसे सारा नील गगन है . कभी लजातीं, सकुचातीं …
गीत गाते रहे गुनगुनाते रहे। रात भर महफिलों को सजाते रहे। सबने देखी हमारी हंसी और हम- आंसुओं से स्वयं को छुपाते रहे। सुर्ख फूलों के आँचल ये लिख …
तुम मुझसे बस शब्द और सुर ले पाये- पर बोलो ! कैसे छीनोगे मुझसे मेरे गीत-? मुझको तो बस गीत सुनाना आता है, होंठो पर संगीत सजाना आता है गहरा …
बिकने के चलन में यहाँ चाहतें उभारों में हैं हम तुम बाज़ारों में हैं बेटे का प्यार बिका है माँ का सत्कार बिका है जीवन साथी का पल-पल महका …
बाँट दिए घट तट पनघट सब भाव बेग तन-मन बाँटे हैं आँगन घर उपजे काँटे हैं हम अनैतिहासिक अनुश्रुति से हैं अनुस्यूत अनूतर कृति से सदाचार के हाट सजाए …
प्यार का निराला युग हूँ न यूँ अनमना कर देखो मुझे गुनगुना कर देखो मन दर्पण में बस तुम हो सुधि सावन में बस तुम हो श्वाँस-श्वाँस मेरे पूजन …