Author: Sajan Murarka
वक्त दर वक्त या बेवक्त हर भाव जो दिल के अन्दर टूटते-बिखरते और इससे परेशान दर्द जब उभरता मैं फिर टूट जाता पर चुप रहने भी नहीं सकता कुछ …
जिन्दगी के दस्तूर बड़े निर्जीव हसंता-रोता खेलता मौत के ठिकाने पहुंचने सजीव इसका तानाबाना यादों के धागों मे बुन थमा जाते कुछ दमकते चिराग जिस का असर अज़ीब रोशनी …
आप तो ऐसे ना थे जरूर कोई बात हुई है या समझने में कोई भूल हुई है आप ही बताए,क्या बात है आपने थाने मे रपट लिखाई है।“ क्या …
असमंजस परिस्थिति-का एहसास, दिल में ये र्दद कब उठा ? कब शरीर का एक-एक हिस्सा, ज़मकर बेज़ान होने लगा? अब जख्मीं हालात मे; आगे धूप से तप्ते पल, पत्थरों …
है आसमान मैं धरती मिलन प्यासी सदीयों से भ्रमित क्षितिज मे मिलन आश्वासित जितनी पास जाती तुम दूर हो जाते पर जब बरसाते स्नेह की धारा पल्लवित आशायें तुम …
दिल की धड्कन के राग कैसे कैसे समझ नहीं आते सुर , फिर भी घुल से गए जैसे, मन मे तरंग मधुर ताल और झंकार चले ऐसे वीना मे …
सिमटी कोई लज़्ज़त- जैसे बाँहों में खामोशी से सीने में रंग भर दे, वैसे ही सहसा,बिन आहट, किसी ख़ास लम्हे को पिरोने रंगों मे हसरत मुहब्बत को सजाने लरज़ते …
शब्द शब्द हैं मुखर नेह अनुवादों की अक्षर अक्षर गमक रहा सुगंध देह की स्याही महकी यादों की फ़ैल गई सुरभि अन्तरमन की मन बहके खुशबु सोंधापन की सजल …
अब मेरे चहरे पे उनकी तस्वीर निगह आए, आइना भी शर्मसार है, मेरे तस्वुर मिट आए सजन
मिलने की नज़ाकत दिल मे शिहरण सी जगाए, वह्कने लगे कदम, फ़क़त उनके गली दौड़ लगाए; सजन
भटके ख़यालात,यादों के फ़सादों से वीरान हो जाए! महकते फूलों मे उनके बदन की खुश्बू ड़ूडंने मन जाए , सजन
मेरी ज़िन्दा-लाश से आह भी न निकले वादा हम करे ! आहों से रिसती गज़ल,खामोशी से प्यार पे निछावर करे| सजन
मालूम न था, बदगुमानों से इश्क का नतीज़ा,क्या करे, किसी सूरत से, दिल को करार मिले, लाचारी क्या करे, सजन
प्यार की नज्म मगर जाने- क्यूँ लाख कोशिश से भी न लिख पाते हैं ? लगता है फुल पे मंडराती तितली : पकड़ते-पकड़ते उंगली से छुट जाती है ! …
माशूक़ की जुल्फों के साये से लरज़ते काँपते दिल की धड़कन से, मुहब्बत की नज़्म लिखने की हसरत, पाना है एहसास के हर लम्हे से
जैसे बाँहों में सिमटी कोई लज़्ज़त- खामोशी से सीने में रंग भर दे, वैसे ही सहसा,बिन आहट, किसी ख़ास लम्हे को शब्दों में पिरोना है | सजन
उनका क्या कसूर ,आए ख़ुद मज़ाक अपना बनाने, बेफिज़ूल इल्ज़ाम है, आग मे जलने आते परवाने| सजन
प्यार के सौदागर वह,हम आते बे- भाव बिकने चमन तो खिलता है, तितलियों के दिल लुभाने सजन
कर डालते क़त्ल नज़रों से,इशारों के कातिल नज़राने| फ़कत नाज़ुक सा दिल, ले जाते क्यों ज़ालिम से तुड़ाने | सजन
ज़ोर नहीं, थोड़ा ग़ौर हम पे,”ढोर” नहीं है समझाने मे, ज़ाहिर उनके खिलाफ़ ज़ुल्म का शोर नहीं देगें उठाने| सजन
मासूम से गिरा कर बिजली किया – खाके-चमन ; किस जुर्म की कलियों को सज़ा देगें, आँसू है बहाने| सजन
आँख होते हुए भी अन्धे जुनून मे मिट गए; चाहत के गहर समन्दर मे डूबते चले गए ; सजन
हर वक्त मन ने सोचा कि दिल कि कुछ कहें- उनकी आवज़ पे , जुवां पर ताले लगते गए ; सजन
काली रात के बाद ही सुनेहरा सवेरा आता है ; तभी उमीद का हर रंग रंगीन नज़र आता है | सजन
एक हसीं खुवाब सा खेल है , अज़ब ज़िंदगी का : हर बार टूट जाता,फ़िर भी मैं इसी ख्वाव मे जीता | सजन