Author: sahar
ग़ज़ल कुछ और बात कह रही है तेरी बेरुख़ी, क्या ज़िंदगी में आ गया है दूसरा कोई ! जिनके बग़ैर ज़िंदगी ये ज़िंदगी ना थी, मेरे ख़ुदा !वो बन …
ग़ज़ल यूँ तो ज़िंदगी से दूर कब की जा चुकी हो तुम, मगर फिर भी क्यूँ सुन के नाम मेरा चौंकती हो तुम ? तब्दीलियाँ आयी हैं कुछ मुझसे …
ग़ज़ल धुंधले से नज़र आते हैं किनारे हमको , छोड़ देना नहीं लहरों के सहारे हमको | जो भी कहना है मुझे, सादगी से कह डालो ! , बदगुमाँ …
ग़ज़ल दूर तक इक सदा गूँजती रह गयी, हादसा टल गया,सनसनी रह गयी ! फिर अधूरा रहा ये सफ़र इश्क़ का, इक दफ़ा मुझमें फिर कुछ कमी रह गयी …
ग़ज़ल तुम नहीं तो इस बयाबाँ ज़िन्दगी का क्या करूँ ? रूबरू है हर ख़ुशी,पर अब ख़ुशी का क्या करूँ ? इक फ़रिश्ते की क़बा ओढ़ी है औरों के …
ग़ज़ल इतनी हसरत से देखता क्या है ! मेरे चेहरे में अब नया क्या है? मिल गये जिस्म मगर दिल ना मिले, गर ये राहत है तो,सज़ा क्या है? …
ग़ज़ल क्या कहूँ पहलू में उनके क्या किया मैं रात भर, ज़ुल्फ़ की इक लट में ही उलझा रहा मैं रात भर | जिसके हर इक अंग पर कुछ …