Author: रामबली गुप्ता
गीत आज मिलन की रात सखी! प्रियतम से मिलने जाऊँगी। लोक लाज सब छोड़ जगत के प्रीत की रीत निभाऊंगी।। प्रियतम से मिलने……… जब निशा मध्य हो आएगी शशि …
वह्र=221 1221 1221 122 हे! ईश! हे’ जगदीश! दया मान व बल दो। हो शीश पे’ आशीष हमें ज्ञान-विमल दो। कर दूर सभी द्वेष मलिन-भाव हृदय से। प्रभु! काट …
अतुकांत वो समुद्रतट की चांदनी रातें सुहानी बातें रजनी का रजनीकर के स्नेहिल ज्योत्स्ना में नहाना भीगना। स्नेह-सिक्त पुलकित यामिनी के मौन अधरों का चुम्बन, आलिंगन रति-परिणय, आहा! हृदयों …
किरीट सवैया संकटमोचन! राम-सखा! तुम, बुद्धि-दया-बल-सद्गुण-सागर। दीन-दुखी अति निर्धन मैं कपि! विघ्न-विपत्ति-विकार हरो हर।। घोर अँधेर बढ़े उर में अब, आश-प्रभा प्रभु! दो हिय में भर। डूब रही तरणी …
सावन मनभावन घेरि-घेरि घनघोर घटा अति स्नेह-सुधा बरसाए जन में। चमक चंचला हाय! विरही मन की तपन बढ़ाये छन में।। भीग-भीग हिय गीत प्रीत के गाये सुख पाये सावन …
पद्य : शृंगारिक लच-लचक-लचक लचकाय चली, कटि-धनु से शर बरसाय चली। कजरारे चंचल नयनों से, हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।। फर-फहर फहर फहराय चली, लट-केश-घटा बिखराय चली। अलि मनबढ़ …
दुर्मिल सवैया बन प्रेम-प्रसून सुवासित हो, उर में सबके नित वास करो। मद-लोभ-अनीति-अधर्म तजो, धर धर्म-ध्वजा नर-त्रास हरो।। सत हेतु करो विषपान सदा, मत किंचित हे! मनुपुत्र! डरो। सदभाव-सुकर्म-सुजीवन …
महाभुजंगप्रयात सवैया करूं अर्चना-वंदना मैं तुम्हारी, महावीर हे ! शूर रुद्रावतारी! कृपा-दृष्टि डालो दया दान दे दो, बढ़े बुद्धि-विद्या बनूं सद्विचारी।। हरो दीनता-दुःख-दुर्भाग्य सारे, तुम्हीं नाथ हे! लाल-सिंदूरधारी! सदा …
ईश करूं नित वंदना, रहो सदा हिय-धाम। कलुष-भेद उर-तम मिटा, सफल करो सब काम।।1।। सदा वास उर में करो, करुणानिधि जगदीश। करूं जोर कर वंदना, धरो कृपा-कर शीश।।2।। पार …
अरकान-212 212 212 212 दिल तेरे बिन कहीं अब बहलता नही। दर्द सीने में है दम निकलता नही।। दर्द दिल का बढ़ा जा रहा है बहुत। दर्दे दिल पे …
वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं? न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में, शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं! जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, …
मुरलीधर धर मुरली अधरन, ग्वालिंन को नचावत हो। विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में, राधा को रिझावत हो। चक्रपाणि पाणि चक्र धर, तुम अधर्म मिटावत हो। दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, …
वह्र-122 122 122 122 निशा-मध्य धीरे से घूँघट उठेगा। सुघर रूप वधु का नयन में बसेगा।। प्रतीक्षा हृदय जिसकी करता रहा है। उसी रात्रि का इंदु हिय में खिलेगा।। …
सुंदर पुष्प सजा तन-कंचन केश -घटा बिखराय चली है। अंजित नैन कटार बने अधरों पर लाल लुभाय चली है।। अंगहि चंदन गंध भरे मद-मत्त गयंद लजाय चली है। हाय! …
सिंधु-शैल-सरि-नभ-धरा, तारक-रवि-सारंग। पेड़-पुष्प-नर-जन्तु-खग, प्रकृति के सब अंग।। महकाते खिल के सुमन, प्रकृति के हर अंग। स्वच्छ गगन नित स्नेह का, भरता स्यामल रंग।। मृदा-वायु-जल-वृक्ष-वन, प्रकृति की सौगात। युक्ति-युक्त दोहन …
चैन लुटा जब नैन मिले तन औ मन की सुध भी न रही। कोमल भाव जगे उर में शुचि-शीतल-स्नेह-बयार बही।। मौन रहे मुख नैनन ने प्रिय से मन की …