Author: Rajesh Kumar Joshi
बचपन में पढ़ी – किताबें , अब सुकून नहीं देतीं . उनके साथ , पन्नें पलटते , देखे थे , मैंने , कई सपने . तरह तरह के और …
हमने जज़्बा ’ए’ मोहब्बत समेट ली , जिस दर से भी गुज़रे, खुशियां समेट ली . यूँ तो ज़ख्मों की कमीं न थी जहाँ में , हमने हर दर्द …
मैं रोया हूँ सहमकर , कि वो न रोये . दिल के गुबार में , है एक तंज , जो — आँखों को , खुलकर बरसने नहीं देता .
ये बातें पुरानी तो नहीं, पर वक़्त की धूल जम गयी है उन पर, एक कच्चा-पक्का स्कूल – पहाड़ों के बीच, और पीपल की कोपलों से भरा पेड़, जिसकी …
मन में मेरे तुम रहते हो , नज़रों को तुम ही दिखते हो . ऐसी बात कहैं अब किससे , मेरे हो मेरे लगते हो ! सर्द सुबह की …
पहाड़ की घुमावदार सड़कें , जो खुद को ही तलाशती हैं . और – दूर गांव की एक ड्योढ़ी , जिसे किसी की आमद का है इंतज़ार . सड़कें …
सरगर्मी है माहौल -ऐ -हिन्दोस्तां , बला का शोर होता है . कोई रहनुमा बनता , कोई सिमटता , बाज़ू -ऐ -ज़ोर …
कितने खूबसूरत हो तुम – ओ ! बसंत-रानी के दरख़्त . एक सीजन ही तो है बीता , और तुम फिर से , लदलदा गए हो , अपनी रोशन …
एक अरसा हुआ – दरिया किनारे खेलते हुए , कुछ भूल आया हूँ . पर कुछ तो है ; जो अपने वजूद से जुड़ा है. शायद , एक टुकड़ा …
शुक्रिया कि तूने लफ़्ज़ों की मौज को, ठौर देने कि है कोशिश. अब ख्वाहिश यही है कि डूब के, देखूं इसमें. महक गयी है, तेरे आने से मेरी बस्ती, …
ऐसा अक्सर हुआ है, तेरे एहसास ने मुझे छुआ है. ये तो नहीं कि जुस्तजू से है शिकायत, मेरे इल्म ने मुझे तनहा किया है. दरिया पे छपछपाती बरसात …
उठी झील से सर्द पवन, औ’ प्रीतम प्रीत लगाई. हाथ साथ, हृदयों का कम्पन, मन की रास रचाई. चुम्बन चुम्बित, चंचल चितवन, निशा प्रखर मुसकाई. मन वीणा झंकृत सी, …
कभी आओ, घर पे. बैठो करीब, दो गल्लां करेंगे. छानेंगे चाय, उजले सफ़ेद कपों में. और सेकेंगे – अपनी रूह, कपों को थामे, चाय की गर्मी से. बचेगा – …
सुना है, तू मशहूर हो गया है, अपने फ़ज़ल से, फलसफा हो गया है. पर मेरे अज़ीज़- अब इंतेज़ार मिलने का, कुछ ज़्यादा हो गया है. कल ही तो …
अपनी आग से जला हूँ मैं फिर से राख बने के गिरा हूँ. पर राख राख नहीं रहती ना, फिर से उठा हूँ मैं किसी फीनिक्स के मानिंद- हवा …