Author: Prabhat singh rana 'bhor'
मैं शुष्क चिरागों की भाँति,वह मधुवन वृक्ष की छाया-सी।मैं ठोस-कठोर हूँ हाड़ सदृश,वह निर्मल-कोमल काया-सी॥ वह पौ फटते यादों में आती,मैं न आता शाम तलक।वह गद्य रूप छा जाती …
मैंने भी गुल्लक भर-भर के,ख़्वाब कई देखे थे।कई दफ़ा फिर झाँक-झाँक कर,सिक्के ख़ूब गिने थे॥वही बेचारी गुल्लक मेरी,याद मुझे करती है।बचपन के सिक्के मेरे,महफूज़ अभी रखती है॥जोड़-जोड़ कर सिक्के …
कुछ लोगों ने साथ दिया है,कई ने दिल भी तोड़ा है।कुछ लोग हमेशा साथ रहे,और कुछ ने तन्हा छोड़ा है॥यह वर्ष भी अंतिम चरण में है,न जाने अगला कैसा …
जब चल-चल तुम थक जाओ,तब पास मेरे तुम आ जाना।सब जग से ठोकर पाओ,तब पास मेरे तुम आ जाना॥नहीं कहूँगा तुमसे कि,जब चले गए थे आए क्यों।सोच-सोच के इधर-उधर …
सोचा है इस बार सही, मिल कर सब कुछ कह जाऊँगा।हाँ माना कुछ देर रही, तू ठहर सही, मैं आऊँगा॥शायद पता है तुझको सब, पर कहना बड़ा ज़रूरी है।मेरे …
आज मेरी लेखनी में,भावना का ज़ोर है।एकांत में हूँ मैं लेकिन,हर तरफ़ बस शोर है॥धीमे-धीमे चल रही है,लेखनी कुछ सोच कर।लिख चुका, न मिट सकेगा,यह विचार हर रोज़ कर॥क्या …
मेरी नाव फ़ँसी मझधार,कुछ तो राह दिखाओ आज।कुछ तो राह दिखाओ आज,मेरे गूगल जी महाराज॥तुम्हरे बिन कोई रह ना पावे,अन्न-पानी सब रास न आवे।जब-जब तुम्हरे दर्शन ना हों,अटक पड़ें …
प्रस्तुत कविता मेरे द्वारा पूर्व में “हिन्दी साहित्य” में प्रकाशित की गयी कविता “अच्छा है…!” से प्रेरित है और एक साथ दोनों ही बेहतर अर्थ प्रदान करती हैं, कृपया …
छोटी-सी इस दुनिया में,दाग-ए-ग़म कुछ गहरे हैं।मत यकीन करना ऐ दिल,यहाँ सभी नक़ाबी चेहरे हैं॥लाख़ लोग दस लाख़ हैं चेहरे,कौन सत्य है कौन प्रपंच।असमंजस में है यह दिल,यहाँ सभी …
कीमतें किसने लगायीं,नाम तुमसे क्या कहें।बिक रहे हैं कौड़ियों के,दाम तुमसे क्या कहें॥आज का जो फ़लसफ़ा है,आज ही तो ख़त्म है।कल ना जाने क्या रहे,अंजाम तुमसे क्या कहें॥आजकल हर …
तेरी ख़ातिर आहिस्ता,शायद क़ामिल हो जाऊँगा।या शायद बिखरा-बिखरा,सब में शामिल हो जाऊँगा॥शमा पिघलती जाती है,जब वो यादों में आती है।शायद सम्मुख आएगी,जब मैं आमिल हो जाऊँगा॥पेशानी पर शिकन बढ़ाती,जब …
कितनी पास है तू,पर दूर भी कितनी है,तारों के बीच में दूरी जितनी है,एक दिन तो शायद, ये दूरी मिटनी है॥तेरा अख़्स है मुझमें यों जैसे,दरिया में चाँद की …
कुछ चीजों को देख के यूँ ही,नज़र चुराना अच्छा है।बोल के पछताने से ज्यादा,चुप हो जाना अच्छा है॥कभी-कभी हालात बदलते,ख़ुद, ‘मैं’ बदला जाता हूँ।हाँ शायद, हालात के सम्मुख,शीश झुकाना …
चुपके-चुपके सहे अकेले,मुख से कुछ न कहता है।हाँ, इक पागल घड़ियाँ तकता,इंतज़ार में रहता है॥थोड़े पल, औ ज़रा-सी चिंता,की ख़्वाहिश वो करता है।मन ही मन उम्मीद लगाए,पर कहने से …