Author: मनी
होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं अहले-नज़र ये चोट भी खाये हुए-से हैं वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क हर अंजुमन में आग लगाये-हुए-से हैं सुब्हे-अज़ल को …
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो ये सुकूत-ए-नाज़, ये दिल की रगों का टूटना ख़ामुशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें …
सकूत-ए-शाम मिटाओ बहुत अंधेरा है सुख़न की शमा जलाओ बहुत अंधेरा है दयार-ए-ग़म में दिल-ए-बेक़रार छूट गया सम्भल के ढूढने जाओ बहुत अंधेरा है ये रात वो के सूझे …
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं यूँ तो हंगामा उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क मगर ऐ दोस्त, कुछ ऐसों का …
सितारों से उलझता जा रहा हूँ शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ तेरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ जहाँ को भी समझा रहा हूँ यक़ीं ये है हक़ीक़त …
हमसे फ़िराक़ अकसर छुप-छुप कर पहरों-पहरों रोओ हो वो भी कोई हमीं जैसा है क्या तुम उसमें देखो हो जिनको इतना याद करो हो चलते-फिरते साये थे उनको मिटे …
हर जलवे से एक दरस-ए-नुमू लेता हूँ लबरेज़ कई जाम-ओ-सुबू लेता पड़ती है जब आँख तुझपे ऐ जान-ए-बहार संगीत की सरहदों को छू लेता हूँ हर साज़ से होती …
हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ फरोज़ाँ फरोज़ाँ दरख्शाँ दरख्शाँ तेरे जुल्फ-ओ-रुख़ का बादल ढूंढता हूँ शबिस्ताँ शबिस्ताँ चाराघाँ चाराघाँ ख़त-ओ-ख़याल की तेरे परछाइयाँ हैं खयाबाँ खयाबाँ गुलिस्ताँ गुलिस्ताँ …
1. लहरों में खिला कंवल नहाए जैसे दोशीज़: ए सुबह गुनगुनाए जैसे ये रूप, ये लोच, ये तरन्नुम, ये निखार बच्चा सोते में मुसकुराए जैसे 2. दोशीज़: ए बहार …
ये तो नहीं कि ग़म नहीं हाँ! मेरी आँख नम नहीं तुम भी तो तुम नहीं हो आज हम भी तो आज हम नहीं अब न खुशी की है …
यूँ माना ज़िन्दगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारो चार दिन भी ख़ुदा को पा गया वायज़ मगर है ज़रूरत आदमी को आदमी की बसा-औक्रात1 दिल से कह …
मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी कभी दीवाने रो भी पडते थे कभी तेरी भी याद आती थी किसके मातम में चांद तारों से …
यह नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चिराग़ तेरे ख़्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग़ दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूं आई की जगमगा उठें जिस …
ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात याद आ रहे हैं इश्क़ के टूटे तआ ल्लुक़ात मासूमियों की गोद में दम तोड़्ता है इश्क़् अब भी कोई …
ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारों चार दिन भी खुदा को पा गया वाईज़, मगर है जरुरत आदमी को आदमी की मिला हूं मुस्कुरा …
रस में डूब हुआ लहराता बदन क्या कहना करवटें लेती हुई सुबह-ए-चमन क्या कहना बाग़-ए-जन्नत में घटा जैसे बरस के खुल जाये सोंधी सोंधी तेरी ख़ुश्बू-ए-बदन क्या कहना जैसे …
रात आधी से ज्यादा गई थी, सारा आलम सोता था नाम तेरा ले ले कर कोई दर्द का मारा रोता था चारागरों, ये तस्कीं कैसी, मैं भी हूं इस …
रात भी, नींद भी, कहानी भी हाय, क्या चीज़ है जवानी भी एक पैगाम-ए-ज़िन्दगानी भी आशिकी मर्गे-नागहानी भी इस अदा का तेरी जवाब नहीं मेहरबानी भी, सरगरानी भी दिल …
मैं होशे-अनादिल1 हूँ मुश्किल है सँभल जाना ऐ बादे-सबा मेरी करवट तो बदल जाना तक़दीरे-महब्बत हूँ मुश्किल है बदल जाना सौ बार सँभल कर भी मालूम सँभल जाना उस आँख …
मुझको मारा है हर इक दर्द-ओ-दवा से पहले दी सज़ा इश्क ने हर ज़ुर्म-ओ-खता से पहले आतिश-ए-इश्क भडकती है हवा से पहले होंठ जलते हैं मोहब्बत में दुआ से …
थरथरी सी है आसमानों में जोर कुछ तो है नातवानों में कितना खामोश है जहां लेकिन इक सदा आ रही है कानों में कोई सोचे तो फ़र्क कितना है …
दयारे-गै़र1 में सोज़े-वतन की आँच न पूछ ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ फ़ज़ा है दहकी हुई रक़्स में है शोला-ए-गुल जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच …
देखते देखते उतर भी गये उन के तीर अपना काम कर भी गये हुस्न पर भी कुछ आ गये इलज़ाम गो बहुत अहल-ए-दिल के सर भी गये यूँ भी …
ना जाना आज तक क्या शै खुशी है हमारी ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी है तेरे गम से शिकायत सी रही है मुझे सचमुच बडी शर्मिन्दगी है मोहब्बत में कभी सोचा …
न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए गुज़र गया ज़माना तुझे भुलाये हुए जो मन्ज़िलें हैं तो बस रहरवान-ए-इश्क़ की हैं वो साँस उखड़ी हुई पाँव …