Author: Garima Mishra
जब चल रहे थे उस रोज़ हम-तुम नदी किनारे.. उन लिपटी हुयी हथेलियों के बीचों-बीच पनपने लगे थे ख्वाब कई सारे जब चल रहे थे उस रोज़, हम-तुम नदी …
कौशाम्बी की कपकपाती ठंडी में, कौड़ा तापते-तापते, एक ख्याल मन की गली से गुज़रा.. क्या ये लाल-लाल कोयले के टुकड़े, आपस में बातें करते होंगे? जलते-जलते अपने आखरी दम …
(16 दिसंबर 2014 को पेशावर के स्कूल में आतंकवादियों ने हमला किया था, जिसमें कई मासूम बच्चों की मौत हो गयी और कई घायल हुए| एक कविता उन मासूम …
फिर कह रहा है रास्ता राही से, लिख फिर इक नया दिन नयी स्याही से ले दिल में नयी उमंग नया जूनून, चला चल निरंतर न ले तू सुकून …
कुछ इस तरह ललकारा ज़िन्दगी ने हमारे वजूद को, की ठान लिया हमने भी, चल अब दो-दो हाथ हो ही जाए… ऐ ज़िन्दगी.. गर मेरे हर बढ़ते कदम पर, …
फिर क्यों न तितली पकड़ें हम, फिर क्यों न पतंग उड़ाएं हम, उन कोने वाले खेतों से, फिर क्यों न गन्ने चुराएं हम… क्या याद है उस माली का …
पत्ति के बीचों-बीच, बैठी है यूँ इक ओस की बूँद, जैसे नयी नवेली दुल्हन बैठे सेज पर पलकों को मूँद चौंक जाती है दरवाजे की हर आहट पर, समेट …
कुछ दरख़्त थे जो नज़र आते थे मेरे घर की खिड़की से काट डाला है उन्हें शाख-शाख, बढ़ती इमारतों ने बेरहमी से… अभी कुछ बरसों पहले की बात है, …
कुछ और गहरा होने दो इस शाम को, दोपहर को अंगड़ाई लेने तो दो.. अभी छेड़ो नहीं नए साज़ तुम, पुरानी धुन को रूह सहलाने तो दो… धुन्दला नज़र …
कुछ दिन पहले, मस्तिष्क की देहलीज से चलते-चलते, जब पहुंचे तहखाने में अपने दिल के, पाया इक पोटली में बंद तेरी यादों को… कुछ यादें थीं जो इक कोने …