Author: Garima Mishra
जो लबों तक आकर लौट जाते हैं, दिल की दीवारों से टकराते हैं, दिमाग की सलाहों में उलझ जाते हैं, जज़्बात ही तो हैं…. कहने दो | किया तो …
कभी फेसबुक पोस्ट के लिए, कभी इंस्टा की स्टोरी के लिए, रंग-बिरंगे ‘फ़िल्टरस’ की आड़ में, ‘लाइक्स’ और ‘कमैंट्स’ की चाहत में, हम रोज़ नक़ाब बदलते ही हैं | …
न दिखती, न सुनती, न थमती, ऐसी घटा, ऐसी सबा हूँ मैं… बिन डोर की उड़ती पतंग हूँ मैं अपना साहिल, अपनी तरंग हूँ मैं पूछते हैं मुझसे कि …
उजली, धुली, चमकती धूप, छत पर है उतरी-उतरी | खिड़की की सलांखों से, मेरे घर में है बिखरी-बिखरी | बलखाती और इठलाती, चलती है यूँ पुरवाई | मानो कारी …
है पूरा जुड़ा तो कोई नहीं, हम सब थोड़े से टूटे हैं | कुछ ग़म है अपने साथ लिए, और कुछ जो पीछे छूटे हैं | हर दिल में …
रात के शहर में, नींद की गली से गुजरते हुए, पलकों की चौखट पर, हलके से आ बैठता है, यूँ स्वप्न जनम लेता है। कभी लोरी सा सुलाता है, …
रात के सन्नाटे में, तपती दोपहरी में, मोहल्ले, कूचे, गलियों में, कुछ क़दमों ने शहर छोड़ा है। बस्तियों से दूर, बहुत दूर, उजड़ी, वीरान सड़कों पर, कुछ साँसों ने …
ज़्यादा पुरानी बात नहीं, एक साल पहले हर घर का ये नज़ारा था | जब Lauxury और class के गालों पर मिला तमाचा करारा था | दोपहर के करीब …
गांव के कुए से कुछ कदम आगे, बूढ़े बरगद के पीछे, कमली की झोपडी और झोपडी में जलती लालटेन । गुजरते पहर के साथ लालटेन की रौशनी कम होती …
छत पर टप-टप नाचती-गाती है बारिश की बूँदें | खिड़की के शीशे पर दौड़ लगाती है बारिश की बूँदें | जब दूर आसमान में चलता है काले बादलों का …
मेरे घर के पिछवाड़े से, कुछ दूरी पर, इक रेल की पटरी दिखती है, अनगिनत पहलुओं पर वो पटरी, इस दुनिया से मिलती-जुलती है.. अपने असीम अस्तित्व में बांधे, …
ओस की बूंदों से, जाड़े के कोहरे से, धूप में परछाई से, बादलों में इंद्रधनुष से, कब हमसे जुड़ जाते हैं, कब छूट जाते हैं.. कुछ रिश्ते अपनी उम्र …
इस लम्बी सी कतार मेंलगी हैं मीलों लम्बी उम्मीदें,कुछ हैं बिजली-पानी सी,कुछ सर पर छत सी उम्मीदें…हर शख्स है चुपचाप खड़ा,पर नज़रें बातें करती हैं,हर चेहरे के मन की …
जंगल के सूखे पत्ते एक कहानी कहते हैं,अब टहनी-टहनी पर कुछ उदास चेहरे रहते हैं…बरखा की राह तक-तक के हैं इनकी आँखें सूख चुकी,अब हरियाली की यादें और बातें …
दूर किसी कोने से कुछ देख रही हैं दो आँखें,जल रहा है हर पेड़-पौधा, बगीचा-बाग़,घर-घर के आँगन में लगी है आग।कतरा-कतरा झुलस रही है चेहरों की मुस्कानतिनका-तिनका टूट रहा …
मेज़ पर पड़ी कलम पुकारती है तुझे, खींचती है तुझे भावों की डोरी से.. सुनाती है कभी आधी, कभी पूरी कहानी, तेरे लफ़्ज़ों को गाती है अपनी ज़ुबानी.. मेज़ …
हर मन में इक खयालों का शहर बसता है…इक ज़हरीले नाग सा, हमें धीरे-धीरे डसता है..बेमाने, बेख़ौफ़, बेपरवाह से हैं इस शहर के बाशिंदे…चीते की रफ़्तार से, बेलगाम घोड़ों …
दूर आसमान में, रात हर रोज़ दिवाली मनाती है,हर शाम अपने घर को अनगिनत दियों से सजाती है…रोज़ सांझ की आहट पे, लेती है विदा नीले बादलों से…टांग देती …
क्या हुआ गर मैं चल नहीं सकता, चलती है मेरी सांस, मेरा हर एहसास चलता है, हैं बहुत बातें ऐसी जिन पर मेरा दिल भी दौड़ता-उछलता है… मेरी आँखों …
कैसे बताऊँ मेरी यादें हैं कैसी, खट्टी-मीठी हैं यादें मेरे जैसी.. चवन्नी के बेर सी कहानियों के ढेर सी | माँ की लोरी सी, दूध की कटोरी सी | …
बेसुध-बेफिक्र कुछ ख़्वाब सो रहे हैं,इन्हें सोने दो।अलसाए-सुस्ताये से अँगड़ाई लेते ख़्वाब,इन्हें सोने दो।सुना है ख़्वाबों की आँखें नहीं होती,पर नींद तो इन्हें भी आती होगी,कहने-सुनने की इनकी भी …
जब सॉंस-सॉंस पर हो भारी,हो ऑंखों पर पट्टी कारी,जब शब्दों पर सर कटने लगे,और बातों पर शव बिछने लगे,क्या तब भी तुम न बोलोगेऔर सत्य से ऑंखें मींचोगे…जब ‘कल्पना’ …
कहीं टूटती सी, कहीं फूटती सी, मेरे गाँव के बीच से गुज़रती ये टूटी-फूटी सड़क..जानती है दास्ताँ, हर कच्चे-अधपक्के मकान की, हर खेत,हर खलिहान की…ये सड़क जानती है,कब कल्लू …
चिमनी से उठता हुआ धुंआ, कर रहा है बयान, किसी के घर की दास्ताँ… कहीं कुछ जल रहा है,बुझा दो | दो दिल राख न बन जाएँ… चल रहे …
न जाने किस उधेड़-बुन में रहता है.. ये मन हर दिन इक नई कहानी रचता है… कभी वक़्ता तो कभी श्रोता है… अपनी कहानी ख़ुद ही कहता है और …