Author: manoj charan
दोहा सावण री झड़ लग रही, घटा चढ़ी घणघोर। भांग धतूरा घुट रिया, चिलमां चढ़गी जोर।१। सावण मनभावण हुयो, खूब सजै दरबार। शिवजी रो महिनो बड़ो, हो री जै …
मैं जानता हूँ,सही नहीं हर बार मैं,पर,नहीं करता झूठ का कारोबार मैं।नहीं लिखता मैं सुभाषित,अपने नाम के आगे भी,नहीं करता बातें बङी मैं,नहीं है मुझको ज्ञान अभी,पर,मेरी किसी बात …
कुछ काले पन्ने भी छिपे हैं, भारत के इतिहासों में।दम तोङ सिसकती मानवता, भूखी प्यासी सांसो में।इतिहासो के वो कालिख भरे पन्ने खुलने चाहिए।जिन्होने शर्मसार की मानवता, उनको दंड …
सबके अपने तर्क हैं, सबके अपने राम।हमलावरों ने देश का, किया काम तमाम।नहीं शिकायत राम को, नहीं वनवासी राम।तन मन ह्रदय में बसे, रघुवर आठों याम।कोई कैफियत कैफ़ी की, …
ये मुद्दा नहीं मंदिर का केवल, ये स्वाभिमान की बाते है। घनघोर गरजती औरंगजेबी शासन वाली रातें हैं। ये चिंगारी है दबी हुई, सदियों से उर में सुलग रही। …
नारी एक भारी देखो सृष्टि पे सारी नारी,नारी इस दुनिया में सिरजनहार है।नारी आगे नतमस्तक सारे देवता भी,नारी आगे झुकता ये सारा ही संसार है।नारी बिना नर आधा जग …
मैं अपने गाँव की मिट्टी का नन्हा छौना था। अंबर थी रजाई, धरती ही बिछौना था। पर मुझे तो विकसित होना था, और मैं विकसित हुआ विकास में ही …
मन तो मेरा भी करता है कविता लिखूँ, चारों दिशाओं पे, मुस्कुराती फिज़ाओं पे, महकती हवाओं पे, झूमती लताओं पे, बल खाती नदियों पे, कलकल बहते झरनों पे, हिमालय …
मन तो मेरा भी करता है कविता लिखूँ, चारों दिशाओं पे, मुस्कुराती फिज़ाओं पे, महकती हवाओं पे, झूमती लताओं पे, बल खाती नदियों पे, कलकल बहते झरनों पे, हिमालय …
सरेराह नीलाम हो रही आबरू जब देश में, कैसे गाऊँ गीत प्यार के, हालत गंभीर है मेरे देश में। सरे बाजार जब बम फटते हो, दूध पीते बच्चे कटते …
तन पे तरुणाई नहीं बचपन की, मन में है साँझ लड़कपन की, दर्द उठा है घुटनों में, ढाल आई उम्र है पचपन की। आँखों में सपने कई हैं पर, …
अतीत के पन्ने पलटता हूँ, तो कुछ ख्वाब, कुछ दर्द, कुछ सपने, कुछ गलतियाँ, अचानक जीवंत हो उठते है। चहकने लगता है, बचपन अचानक अतीत के आँगन में। मामा …
देश का जनाज़ा है ये कैसा है तमाशा जाने, देश का किसान आत्महत्या पे उतारू है। कैसी है समस्या जाने अन्नदाता परेशान, देश की सरकार भी अब हो गई …
रोज मुझे तंग करता है, रोज मुझसे जंग करता है, ललकार रहा है वो मुझे, जबसे पैदा हुआ हूँ, नित नए रंग करता है। कतरा-कतरा जर्रा-जर्रा, इंच दर इंच …
मेरे कुछ सपने है, मेरी प्यारी रेल के, जुड़े हुए हैं जो जीवन, के खेल से। रेल मेरी शुरू होती है, बचपन के प्यारे खेल से, छोटे-छोटे स्टेशन से, …
अंतर अगन जलाए रखो, खुद को खुद ही जलाए रखो, मैं को, मेरे को, मुझसे और मुझको, सबको दूर करो तपन से, अहम लपट लगाए रखो। मन में रखो …
शहीदों की शहीदी भी आजकल तिजारत हो गई है, राजनीति की मंडी में, दलालों की वज़ारत हो गई है। अक्सर पूछ बैठते है आजकल लोग यहाँ पर, भगतसिंह की …
हाँ माँ सच है कि, मुझ पर तेरा कर्ज है, सच है तेरी सेवा करना मेरा सबसे बड़ा फर्ज है। सच है कि मैं तेरे कारण हूँ, तेरी रज …
हाड़- हाड़ धाड़-धाड़ मची मारवाड़ मैं। जाड़-जाड़ खाड़-खाड़ फाड़-फाड़ माड़ मैं। हिंदवाणी सूरज लगन लाग्यो फिको-फिको। भालो ले’र जाग्यो शेर दडुक्यो मेवाड़ मैं।१। ढूंढाड़ तो जाय बड्यो अकबर री …
म्हारे हीवड़े री ओ कोर ! गई कठे तू मनै छोड़, रिश्तो हीवड़े स्युं तोड़, जीवड़े नै एकलो छोड़, गयी म्हारै मनड़े न मोहर, म्हारै हीवड़े री कोर। हीवड़ों …
फूट रहे हैं बम और गोले, कोई नहीं आबाद यहाँ, कहने को आजाद है भारत, कोई नहीं आजाद यहाँ, बहती गंगा को रोक दिया चंद रूपियों के गलियारों में, …
मैं चारण हूँ चंडी वाला, चलता शोणित धारों पर, मैं झूलता आया बचपन से झूला तलवारों पर, खेला खेल सदा ही मैंने, बरछी तीर कटारों से, झेला है हर …
कुए की छाया कुए मैं रैगी, बात बणे ही, बस बणती बणती रैगी। रोकणे की कोशिस ही नदी की धार नै रेत स्युं, पण रेत ही, पाणी कै सागै …
छाया है जुनून मन में कुछ करने की ठानी रे, मेरे प्यारे देश कुर्बान तुझ पे जवानी रे, देनी तो होगी हमको ये कुर्बानी रे, मेरे प्यारे देश तुझपे …
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे, एक दिन दुनियाँ सूं काया चली जाणी रे, काम करयोडा थारा बणसी निसाणी, झूठ-कपट की सारी झूठी कहाणी रे।१। आम तो तूँ …