Author: के. एम. सखी
उफनती लहर ने पूछा समन्दर के किनारे से निस्तेज से क्यूँ हो शान्त मन में क्या है तुम्हारे । समेटे हूँ अथाह सागर तीखा, पर गरजता है । छल, …
रेत के समन्दर में सैलाब आया है न जाने आज ये कैसा ख़्वाब आया है दूर तक साँय-साँय-सी बजती थी शहनाई जहाँ वहीं लहरों ने मल्हार आज गाया है …
हाँ, ये मन प्यासा कुआँ है मन अंधा कुआँ है । मन एक ऐसा जुआ है जो सब कुछ जीत कर भी अतृप्त ही रहता है । जिसकी अभिलाषाओं …
यह कैसी शाम है जो ठहर-सी गई है यह कैसी शाम है जो देख रही है मायूस नज़रों से । आज क्या हो गया है इन्हें मेरे मन की …
एक मोटा चूहा मेरी ज़िन्द़गी को बार-बार कुतर रहा है अपने पैने दाँतों से । उसने मेरी ज़िन्दगी की डायरी को कुतर-कुतर के अपनी भटकती ज़िन्दगी का बदला लेना …
ये क्या है, जो मानता नहीं समझता नहीं समझना चाहता नहीं कुछ कहता नहीं कुछ कहना चाहता नहीं। तुम इसे गफ़लत का नाम दो मैं इसे मतलब का । …
पंछी उड़ता डोले है आकाश में डोल- डोल थक जाए ये तन जरत दिया मन आस में पंछी उड़ता डोले है आकाश में । उषा की वेला में पंछी …
दु:ख में मुझको जीने का अरमान था सुख आया जीवन में ऐसे लेकिन मैं कंगाल था । लक्ष्य नहीं था, दिशा नहीं थी लेकिन बढ़ते ही जाना था नहीं …
भाव बहुत हैं, बेभाव है, पर उनका क्या करूँ तुम मुझे कहते हो लिखो, पर मैं लिखूँ किस पर समाज के खोखलेपन पर लोगों के अमानुषिक व्यवहार पर या …
उजाले के समन्दर में गोते लगाकर मैंने अंधियारे मन को रोते देखा । जगमगाहट से लबरेज़ उस हवेली का हर कोना फटे-हाल भिखारी-सा, सजा-धजा-सा था । पर, मौन, नि:शब्द, …
अनाम रिश्तों में कोई दर्द कैसे सहता है, खून के बाद नसों में पानी जैसा बहता है । जरा सी ठेस से दिल में दरार आ जाती है, बादे …
पथ पे आयेंगे लोग जाने कब सर उठाएंगे लोग जाने कब आसुओं से उमड़ पड़े सागर मुस्कुराएंगे कोग जाने कब जख्म मुद्दत से गुदगुदाते हैं खिल्खिलायेंगे लोग जाने कब …
जीवित हूँ क्या अर्थ ? मुझे कुछ जीने का अहसास तो हो रूह मेरी समझा जाता है जिसको मेरे पास तो हो आप भी मेरी तरह समंदर शोलों के पी …
कुछ तो कमरे में गुजर होगा हवा का पागल खिडकियां खोल की है हब्स बला का पागल उसकी बकवास में होती है पते की बात कभी कर दे न …
बोझ ह्रदय पर भारी हो पर मुख पर उजियारी हो कुर्सी की टांगें न हिले जंग चले बमबारी हो अपना हिस्सा ले के रहे तुम सच्चे अधिकारी हो चम्बल …
दुनिया के गम फिजूल की फिकरों से बच गए अच्छा हुआ की तुम मेरे शेरोन से बच गए कर्फ्यू-जदा इलाके में तुम लोग भी तो थे तुम लोग कैसे …
जमी पर खेल कैसा हो रहा है समूचा दौर अंधा हो रहा है कहाँ कोशिश गई बेकार अपनी जो पत्थर था वो शीशा हो रहा है न रोके रुक …
अपने सीनों में मेरा बिम्ब बराबर देखो दोस्तों ! मुझको अगर आईना बनकर देखो यह पहाड़ों के पिघलने का नतीजा तो नहीं पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो कैसे …
धन की राहें ढूंढ ली सत्ता की गलियां ढूढ़ ली डूब मरने के लिए लोगों ने नदियाँ ढूढ़ ली कितनी ही सदियाँ गवां दी एक लम्हे के लिए एक …
शक्ल मेरी क्या चमकी आपकी सभा चमकी गहरी कालिमा चमकी या मेरी दुआ चमकी ज्योति पा गई धरती बन के आईना चमकी मेरे जख्म क्या चमके आपकी अदा चमकी …
डूबने के भय न ही बचने की चिंताओं में था जितने क्षण मैं आपकी यादों की नौकाओं में था थे जुबा वाले हमारे युग में कैसे मानिए मौन के …
अग्नि शय्या पर सो रहे हैं लोग किस कार्ड सर्द पड़ चुके हैं लोग तोडना चाहते हैं अमृत फल जहर के बीज बो रहे हैं लोग मंजिलों की तलाश …
चहरे की मुस्कान गई मेरी भी पहचान गई कैसी सभी सुशीला थी जिसने कहा जो, मान गई मूल्यों का संरक्षक था मुफ्त ही जिसकी जान गई जख्म से बच …
आखों में भडकती हैं आक्रोश की ज्वालाएं हं लांघ गए शायद संतोष की सीमाएं पग पग पे प्रतिस्थित हैं पथ भ्रस्त दुराचारी इस नक़्शे में हम खुद को किस …
द्रश्य जारी हैं मगर परदे गिराए जा रहे हैं जाने किस शैली में अब नाटक दिखाए जा रहे हैं देश क्या अब भी नहीं पहुचेगा उन्नति के शिखर पर …