Author: kiran kapur gulati
वर्क उड़ने लगेकिताब ज़िंदगी की खोली ही थीकि वर्क उसके उड़ने लगेछा गई बाहर कुछ ऐसीकी फिर हम सभलने लगेखट्टे मीठे पलों कीयादें उभर रहीं थीबीते पलों में जैसे बहकने …
तारों की चादर सरक गयीकिरणो ने डाला डेरा हैउठ जाग मुसाफ़िर भोर भईलाली ने आस्मां घेरा हैनदियाँ दिखतीं दर्पण सीपानी का रंग सुनहरा हैकलरव करते पंछियों नेकिसी रागनी को …
देखा जो आइना कि आँसू निकल पड़ेतेरी बेचार्गी पे आँसू निकल पड़ेआँखों से चिपके मोती देखे जो ग़ौर सेबेमोल हैं ये ,सोच कर ,आँसू निकल पड़ेसंभाल रखे थे छुपाकर …
मन के मोती बिखर गएमला के तार टूट चलेधीरज जितना भी बांधाआशा के तार छूट चलेचुन चुन मोती लाती हूँमाला नई बनाती हूँपहली सी वो बात कहाँगाँठ नयीं इक …
गिनती की ही मिली हैं हमें धड़कनेंन इतरा , न इनका तू एतबार करकहीं रुक गयीं जो ,एक बार तोक्या रख सकेगा ,कुछ सम्भाल करधडकती हैं जब तक …
कुछ बीत गया कुछ नया आया हैनये सपनों का आनंद लाया हैभर लो आँचल ख़ुशियों से तुमकान्हा भर भर सब लाया है प्रीत की जोत जगाने वालानींद गहरी से उठाने …
नयन कटोरे भर भर आएँजब जब कान्हा तेरी याद सताएहल्की सी जो झलक दिखा दीप्यार की तूने अलख जगा दीअब याद उस पल को करती हूँजब शंका तूने सारी …
तेरे चरणों में जब आती हूँमैं चैन मन का पाती हूँदुनिया मनभावन लाख सहीभरोसा इस पर ज़रा नहींरंग हैं इसके बड़े निरालेतन को मन को लुभाने वालेपर काली काली …
इंसानियत से बड़ाधर्म कोई हो नहीं सकताकहलाने को इंसानज़मीर कभी सो नहीं सकताधर्म बनाता है कौनऔर किस के लिएदूत इससे बड़ाकोई हो नहीं सकताशांति भाईचारा बना रहेप्यार से बड़ा …
कुछ पल के लिए ही सहीतुम मेरे साथ चले आओझूमते हुए मस्त नज़ारों मेंबस चुप चाप चले आओसमायी है कण कण में जोउस ताक़त को ज़रा निरखने दोक़ुदरत ने …
दौड़ kiran kapur gulati28/10/2016 3 Commentsसदियों से चल रहीइक अजीब दौड़ हैछूट जाता है कभी कहीं कुछकभी ख़्वाहिशों के दौर हैंनहीं थमता यह वक़्त कभीसाँस हर पल चलती हैख़ुशनुमा …
सदियों से चल रहीइक अजीब दौड़ हैछूट जाता है कभी कहीं कुछकभी ख़्वाहिशों के दौर हैंनहीं थमता यह वक़्त कभीसाँस हर पल चलती हैख़ुशनुमा होते हैं मंज़र कभीतो सफ़र सुहाना लगता …
तूँ मेरा मैं तेरी कान्हाभला किस विधफिर मैं तुम्हें रिझाऊँयाद करूँ मैं हर पल तुझकोहो विभोर मैं नीर बहाऊँकर लो तुम भी वादा मुझसेप्रेम तेरा मैं हरदम पाऊँखो जाए …
जगति है आशा कि किरण और मिट जाती है मौजों से लड़ती कश्ती लहरों से कियूँ टकराती है जब मिलती नहीं मंज़िल सोच सोच घबराती है है खेल आशा …
हम हैं क्या , और है क्या हक़ीक़त हमारी जुड़ती हैं जब लकीरें आकार बन जाते हैं सूर्य की किरणों में जैसे रंग ढल जाते हैं रंगों और आकारों की दुनिया …
है सब तेरा कहाँ कुछ मेरा करूं मैं हरदम मेरा मेरा कुछ पलों का है यह डेरा जीवन तो है बस इक फेरा माटी का है उपकार जो जीवन …
माना जग में राज है तेरा सब पर रौब जमाते हो सोऊँ जब. सुंदर सपनों में आकर तुम जगाते हो जग सारे से है रिश्ता तेरा हिस्सा उसमें है …
अद्भुत वादियों के नज़ारों को देख खो गयी थी मैं ओढ़ के चाँद तारों की चादर सो गयी थी मैं देख लाली आसमानों की विभोर हो गयी थी मैं …
ठंडी हवा के झोंकों सी इक अद्भुत कहानी याद आयी बैठे तारों की छांव में कोई बात पुरानी याद आयी महकती थी रात की रानी वो रात सुहानी याद …
कहीं भी कुछ कमी नहीं बारात यादों की थमी नहीं जब भी कोई आघात हुआ आँखों को नमी का अहसास हुआ आज हर जगह बरसरते शोले हैं फटते रोज़ …
कैसे. कान्हा. तुझे प्यार. करूँ है माला शब्दों की जिससे मैं. श्रृंगगर करूँ देखूं तुझको तो तेरे नयनों में मैं खो जाऊं देख प्यारा मुखड़ा तेरा शब्दों में उलझ …
राह तकूँ मैं हर पल तेरी कहो. कान्हा. कब आओगे हो गयी सांझ. आ गयी बारी क्या अब भी देर लगाओगे तन भी अब तो डोल. रहा मन भी …
बचपन की बातें वो तारों भरी रातें गर्मी के मौसम में बदली का छाना और अचानक ही बहना ठंडी हवा. का बिस्तर पे लेटे नज़ारा करते थे हम छुपता …
कांच को हीरा. समझती रही पथरों से ही झोली भर्ती रही उलझ दुनिआ के रंगों में डूबती रही उभरती रही दामन में मोती डाले तूने मोल समझ न पाई …
रेगिस्तान में फूलों की तमन्ना न करो गिरती दीवारों. के तले आशियाँ न करो वीरान वादियों में बहारों की तमन्ना न करो सहरअं में बहें. झरने , ऐसी फ़िज़ूल …