Author: हेमन्त'मोहन'
ख़्वाहिशें भूल कर, ख़्वाबो से दोस्ती कर, अँधेरे पास ना आएंगे, चरागों से दोस्ती कर | घूमते हैं यहाँ ..नकाब पहने लोग, तू दिल को देख न चेहरो से …
आईने में देखकर मैं खुदको पहचान ना सका मैं कौन हूँ कैसे हूँ यहाँ जान ना सका . अब अपने तजुर्बे पे मुझको गुमान था नहीं चुप रह के …
जरुरी नहीं है फरिश्ता होना , इंसा का काफी है इंसा होना || हकीकत ज़माने को अब रास नहीं आती, एक गुनाह सा हो गया है आईना होना || …
ये दुनिया है मेरे दोस्त .. नफरत से जलती है.… मोहब्बत से चलती है। ये रातों सी काली भी है … ये संझा की लाली भी है बदलते मौसम …