Author: Dhirendra Panchal
रौद्र रूप देख थर्रायी है,धरती पाकिस्तान की । कफ़न बाँध कर रण में उतरी,मिट्टी हिन्दुस्तान की । छेड़ रहे थे सिंहों को,थी चर्चा स्वाभिमान की । बालाकोट में गरज …
अकबर हुआ दुलारों में । हैं राणा खड़े क़तारों में । हम पढ़ते हैं बाज़ारों में । कुछ बिके हुए अख़बारों में । ये जाहिल हमें सिखाते हैं । …
राफ़ेल की परिचर्चा में वो चर्चा हमने भुला दिया । डाँट ग़रीबी को हमने भी भूखे तन ही सुला दिया । पेट के भीतर जलती रहती अंगारें अभिमान में …
कांग्रेस मुख्यालय गूंजा , श्री राम के नारों से । अब बोलेंगी देखो मैडम,सुबह सुबह अख़बारों से । बड़े दिनों से जुगनू हमने देखे ना अँधियारों में । मोदी …
रुके नहीं कदम तेरे , विपत्तियों का राज है । तू खून से तिलक लगा , ये शत्रु की आवाज है । तू तिलमिलाए दुश्मनों की , कोशिशें नाकाम …
हे मृत्युंजय हे दुःखभंजन , कष्ट निवारो आय ।ये तो मोदी की सरकार हमसे बनवाएगी चाय ।छोटे से कमरे में जीवन डिब्बा समझ बिताते ।सबसे सस्ती सब्जी लाकर खूब …