Author: deshbandhu
सुन्दर सौम्य सबल है तू मेरे जीवन में मेरी जान हर पल है तू हर पल को याद कर तुझे याद करता हूँ मेरा कल ,आज और कल है …
लड़खड़ाते मेरे कदम माँ तेरी उंगली ढूंढ़ते हैं संभल जब नहीं पाते तो तुझे ढूंढ़ते हैं नफरत से भरे इस जहाँ में न जाने आज भी हम माँ को …
तेरे ही ख्याल से क्यों ? शुरू होती है जिन्दगी शाम होते – होते क्यों ? तनहा हो जाती है जिंदगी बिखर गए जो मोती संभाल क्यों ? नहीं …
जब तोड़ के हर बंधन दुनियाँ छोड़ जाऊंगा ये बादा है मेरा एक बार तेरी भी आँखें नम कर जाऊँगा गीले शिकवे तो बाद में हर बात याद आएगी …
जब भी मैं रो लेता हूँ तेरे दिए जख्म सी लेता हूँ जब भी तुम याद आते हो ग़मों के ज़ाम चुपके से पी लेता हूँ डर लगता जब …
हम दीवारो -दर ही जोड़ते रहे जिंदगी कतरा -कतरा बिखरती गयी हाथों में उलझी लकीरें बंद दरवाजों में धकेलती रही पत्थर बन गए जज़्वात आग अंदर ही अंदर सुलगती …
जब भी मैं रो लेता हूँ तेरे दिए जख्म सी लेता हूँ जब भी तुम याद आते हो ग़मों के ज़ाम चुपके से पी लेता हूँ डर लगता जब …
आज भी कम खाता हूँ तो रो देती है माँ दुनिया बालों की बुरी और काली बलाओं से काला टिका लगा कर बचाती है माँ १ खा नहीं पाता …
दुनिया के मेले को हम छोड़ आये हैं तेरी यादों को तनहा छोड़ आये हैं बीत जाए सकूँ से जो वो अच्छी वरना तो जीने की तमन्ना हम कब …
जहाँ को छू लुंगी मुझे उड़ान भर लेने तो दे छोटा पड़ जाएगा आसमान भी बाबुल मेरे सपनों को पंख लग जाने तो दे नहीं कोई गम होगा खुशियों …
सुनी इन आँखों में देख् सैलाब सा मंज़र नजर आएगा जहाँ रहते थे तुम वहाँ अश्कों का बाँध सा नजर आएगा आज भी मेरी ग़ज़ल में तुम ही होती …
गमलों में उगने वाले लोग बरगद की बातें करते हैं जो कभी हमारी बातें करते थे आज जमाने भर की बातें करते हैं कभी दिलों में रहने वाले … …
तारों से भी बेख़वर है सा है चाँद आज क्यों थोड़ा सा जो रूठ गए हम तो सर पर है आसमान आज क्यों भूले भूले से है शहर के …
क्या ही ऐसा होता की तकिया जुदा कर पाता हमें ये तो तेरी बेरुखी थी जो दिवार बनकर मीलों के फासले पर ले गयी हमें कैसे भूल सकता हूँ …
सुनी इन आँखों में देख् सैलाब सा मंज़र नजर आएगा जहाँ रहते थे तुम वहाँ अश्कों का बाँध सा नजर आएगा आज भी मेरी ग़ज़ल में तुम ही होती …
मेरा ग़म सलामत रहे तेरे दिल में मै रहूँ न रहूँ दूनियाँ तेरे खाबों कि बसती रहे चाहे खाबों में मै रहूँ न रहूँ हर खुशी तेरी नज़र रहे …
सुनी इन आँखों में देख् सैलाब सा मंज़र नजर आएगा जहाँ रहते थे तुम वहाँ अश्कों का बाँध सा नजर आएगा आज भी मेरी ग़ज़ल में तुम ही होती …
क्या पूछते हो पता मेरा हैसियत या जात मेरी मिटटी का शरीर लिए फिरता हूँ आँशुयों के सैलाब में बहता रहता हूँ … चंद निबालों कि ख़ातिर पूरा पेट …
पलकों के बाँध के पीछे कैद दो आंसू आज सैलाब ही ले आते आज गर आप वर्षों बाद रास्ता न बदलते तो बदल जाती मेरी भी तासीर गर आज …