Author: बन्टी "विकास" माहुरे
मेरी नीम सी कड़वाहट भरी रागो में शहद भरदे एक मीठा सा करम कर और इतनी मोहब्बत करदे ________विकास__________
मेरी नीम सी कड़वाहट भरी रागो में शहद भरदे एक मीठा सा करम कर और इतनी मोहब्बत करदे ________विकास__________
इक नज़र इधर भी_________ कल जैसी थी उन तारीखों का आज भी वही हाल है कही जलसे तो कही कोई आज भी भूख से बेहाल है आँखे मूंद भी …
ज़र्रा से ज़र्रा मिलकर बना जहान चाँद सूरज तारों से सजा आसमान अपने रूप,रंग प्रेम से ही बनाया फिर भी मालिक तेरी सोच सा क्यों नहीं बना इन्शान ________विकास______
ऐ बूत-ए-संगमरमर माना मूझसे तेरी खुबसुरती लाख हैं पर बात होती है जिस जगह दिल और ज़ज्बात की वहाँ तेरी क्या औक़ात हैं \\\\\विकास/////
||यूं ही कम ना थी जिंदगी की उलझने उस पर भी ये दिल दिया तेरी खुदाई के क्या कहने|| रोता हुँ मैं बिलखता हुँ मैं हर आह मे बस …
काश तेरी मोहब्बत ने शायर बनाया होता मुझे तो लेख लिखता दिल छू जाने वाले ये तो तेरी बेवफाई का ही नतीजा हैं हर शब्द निकलते है दिल से …
मंज़ील तक दोगे साथ मेरा जैसे कोई राह हो॥ दिल की गहराई में डुब जाओ गर मेरी चाह हो॥ छोड़ दो हाँथ मेरा बाद मे बड़ी ही मुश्कील होगी॥ …
manzil tak doge sath mera jaise koi rah ho.dil ki gahrai me dub jao gar meri chah ho.chhod do hath mera bad me badi mushkil hogi.gar is bedard duniya …
“मैने चान्द से पूछा”-~कि अये चान्द किसके लिये तु रातो को जागता है,,,,,आखिर कौन है जिसके लिये इस दिशा से उस दिशा भागता है,,,,,इस दूनिया मे तो लोग तेरा …
“मैने चान्द से पूछा”-~कि अये चान्द किसके लिये तु रातो को जागता है,,,,,आखिर कौन है जिसके लिये इस दिशा से उस दिशा भागता है,,,,,इस दूनिया मे तो लोग तेरा …
तूही मेरी हसरतो में, तूही दिल का शुकुन हैं तेरी खुश्बू है सांसो में,तेरे ही रंग रंगा मेरा खून हैं ऑखे खुले तो तेरा नज़ारा,जूबां पर बस तेरी ही …
शुभ प्रभात और पूराना साल मूबारक हों क्यूकि “”तारीखें बदलती है हालात कभी नही बदलते हैं मंज़ीलो पर हूक़ुमत उन्ही की जो वक्त के साथ चलते हैं दिन दस्तुर …
इस अनजानी दूनीया मे अनजान,,,,, “मै कौन हू”,,,,,,,,,, इन समझदारो की भीड़ मे एक नादान,,,,, “मै कौन हू”,,,,,,,,,, सच्चाई का चोला ओढ़े दगाबाज़ो सँग खड़ा हो रहा बदनाम,,,,, “मै …
आँखी ला खोलके जागव->कहिथे हमर देश हा जागत हावे,कोन जनी ये क उन कोती भागत हावे,कभु गुरू अ ऊ कभु कसाब, कभू करय धरना ले बर काला धन के …
किस तरह से पेश आऊ तेरी खिद़मत में ऐं हूज़ूर मेरी शराफ़त से तो बल पड़ते है तेरी पेशानी मे और दगाबाज़ो की चिकनी बाते तूझे सूकून देती हैं,,,,, …
,,तेरी शराफ़त ने ही कर िदया बदनाम तूझे वर्ना ऐ “विकास” जैसी हैं दूनीयाँ गर वैसा होता तू तो सब के दिलों पर राज करता,,